शीर्षक - एक पिता ।। गज़ल। सुबह काम को जाते, संध्य | हिंदी Shayari

"शीर्षक - एक पिता ।। गज़ल। सुबह काम को जाते, संध्या को लौट कर आते, अपना दुःख दर्द, पिताजी हमें न बताते? घर में पहले भोजन, सबको है करवाते, सदा हक की खाते, थोड़ा हमको भी सिखाते। अपना दुःख दर्द, बापू हमसे है छिपाते? झट-पट टी वी बंद कर, हम भी तो छीप जाते, जब पापा लौट के आते, हम सब पढ़ने लग जाते। दबंग आवाज़ में बापू, कभी तो फटकार लगाते, सदा हस्ते रहते, हम सबको ख़ूब हसाते। अपने सपनों को जलाके, बापू घर हे चलाते, उनके संघर्षों की गाथा, कभी हमें भी सुनाते। कोमलता ह्रदय में, बाहर सक्ती दिखाते, प्रातः काज को जाते, संध्या को लौट कर आते। हम बच्चे पिता को, इतना कहा समझ पाते, भले पर्स हो खाली, बापू उधार भी ले आते। हमारी हर फर्माइश को, पिता झट से पूरा कर जाते, डाट फटकार ही सही, पर बापू मुझको है भाते। सुबह काम को जाते, संध्या को लौट कर आते, अपना दुःख दर्द बापू, हमसे क्यों है छीपाते??? @_charpota_natwar_ ©Navin"

 शीर्षक - एक पिता ।। गज़ल।

सुबह काम को जाते,
संध्या को लौट कर आते,
अपना दुःख दर्द,
पिताजी हमें न बताते?

घर में पहले भोजन,
सबको है करवाते,
सदा हक की खाते,
थोड़ा हमको भी सिखाते।

अपना दुःख दर्द,
बापू हमसे है छिपाते?

झट-पट टी वी बंद कर,
हम भी तो छीप जाते,
जब पापा लौट के आते,
हम सब पढ़ने लग जाते।

दबंग आवाज़ में बापू,
कभी तो फटकार लगाते,
सदा हस्ते रहते,
हम सबको ख़ूब हसाते।

अपने सपनों को जलाके,
बापू घर हे चलाते,
उनके संघर्षों की गाथा,
कभी हमें भी सुनाते।

कोमलता ह्रदय में,
बाहर सक्ती दिखाते,
प्रातः काज को जाते,
संध्या को लौट कर आते।

हम बच्चे पिता को,
इतना कहा समझ पाते,
भले पर्स हो खाली,
बापू उधार भी ले आते।

हमारी हर फर्माइश को,
पिता झट से पूरा कर जाते,
डाट फटकार ही सही,
पर बापू मुझको है भाते।

सुबह काम को जाते,
संध्या को लौट कर आते,
अपना दुःख दर्द बापू,
हमसे क्यों है छीपाते???

@_charpota_natwar_

©Navin

शीर्षक - एक पिता ।। गज़ल। सुबह काम को जाते, संध्या को लौट कर आते, अपना दुःख दर्द, पिताजी हमें न बताते? घर में पहले भोजन, सबको है करवाते, सदा हक की खाते, थोड़ा हमको भी सिखाते। अपना दुःख दर्द, बापू हमसे है छिपाते? झट-पट टी वी बंद कर, हम भी तो छीप जाते, जब पापा लौट के आते, हम सब पढ़ने लग जाते। दबंग आवाज़ में बापू, कभी तो फटकार लगाते, सदा हस्ते रहते, हम सबको ख़ूब हसाते। अपने सपनों को जलाके, बापू घर हे चलाते, उनके संघर्षों की गाथा, कभी हमें भी सुनाते। कोमलता ह्रदय में, बाहर सक्ती दिखाते, प्रातः काज को जाते, संध्या को लौट कर आते। हम बच्चे पिता को, इतना कहा समझ पाते, भले पर्स हो खाली, बापू उधार भी ले आते। हमारी हर फर्माइश को, पिता झट से पूरा कर जाते, डाट फटकार ही सही, पर बापू मुझको है भाते। सुबह काम को जाते, संध्या को लौट कर आते, अपना दुःख दर्द बापू, हमसे क्यों है छीपाते??? @_charpota_natwar_ ©Navin

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