बड़े बेशरम हो उसी गली से गुज़रते हो जिस गली का दर | हिंदी शायरी

"बड़े बेशरम हो उसी गली से गुज़रते हो जिस गली का दरख्त तुम्हें दो पल की छाँव भी ना दे सका जहां के रास्तों ने तुम्हारे वास्ते पत्थर उगा लिए,जिन घरों ने वादे किए थे चराग जलाने के, उन घरों की हवाओं ने अपने सब पर्दे गिरा लिए, उस रुखसारे हुस्न ने तुमसे मुह अपना मोड़ लिया तुम्हारी "बेशरमी" का पर्दा अपने माथे पर भी ओढ़ लिया ©Pushpendra Singh Rajput"

 बड़े बेशरम हो उसी गली से गुज़रते हो 
जिस गली का दरख्त तुम्हें 
दो पल की छाँव भी ना दे सका 
जहां के रास्तों ने तुम्हारे वास्ते 
पत्थर उगा लिए,जिन घरों ने वादे किए थे चराग जलाने के, उन घरों की हवाओं ने अपने सब पर्दे गिरा लिए, उस रुखसारे हुस्न ने तुमसे मुह अपना मोड़ लिया 
तुम्हारी "बेशरमी" का पर्दा अपने माथे पर भी ओढ़ लिया

©Pushpendra Singh Rajput

बड़े बेशरम हो उसी गली से गुज़रते हो जिस गली का दरख्त तुम्हें दो पल की छाँव भी ना दे सका जहां के रास्तों ने तुम्हारे वास्ते पत्थर उगा लिए,जिन घरों ने वादे किए थे चराग जलाने के, उन घरों की हवाओं ने अपने सब पर्दे गिरा लिए, उस रुखसारे हुस्न ने तुमसे मुह अपना मोड़ लिया तुम्हारी "बेशरमी" का पर्दा अपने माथे पर भी ओढ़ लिया ©Pushpendra Singh Rajput

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