बड़े बेशरम हो उसी गली से गुज़रते हो
जिस गली का दरख्त तुम्हें
दो पल की छाँव भी ना दे सका
जहां के रास्तों ने तुम्हारे वास्ते
पत्थर उगा लिए,जिन घरों ने वादे किए थे चराग जलाने के, उन घरों की हवाओं ने अपने सब पर्दे गिरा लिए, उस रुखसारे हुस्न ने तुमसे मुह अपना मोड़ लिया
तुम्हारी "बेशरमी" का पर्दा अपने माथे पर भी ओढ़ लिया
©Pushpendra Singh Rajput
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