बेहाल मजदूर ....
कहाँ गये वो लोग,
जो ये मकान बनाया करते थे ।
किया करते थे मजदूरी,
दो वक़्त की रोटी लाया करते थे ।।
आज उन्होंने खाया,
या भूखे तो नहीं ।
या भूख से मजबूर होकर,
दिल से टूटे तो नहीं ।।
क्या आज उनकी कोई सुध नहीं है,
या उनका कोई वजूद नहीं है ।
कोई जाकर देखे उनके बच्चे को,
शायद घर में उनके दूध नहीं है ।।
समझ नहीं पाता हूँ जो देख रहा हूँ,
ये हकीकत है कि ये भ्रम है ।
कहीं कोई भूखा पड़ा है,
तो कहीं किसी की आँखे नम है ।।
नाम - संजीव कुमार
पता - दिल्ली
जन टाइम्स @ May 08, 2020
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