Sanjeev Kumar

Sanjeev Kumar Lives in New Delhi, Delhi, India

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मजबूर मजदूर मजदूर हैं हम, मजबूर हैं हम, बनाते मिट्टी को सोना, मशहूर हैं हम । गर हक अपना हम मांगते, लोग कहते मगरूर है हम ।। लेखक: नाम - संजीव कुमार पता - दिल्ली ©Sanjeev Kumar

#Flower  मजबूर मजदूर


मजदूर हैं हम, मजबूर हैं हम,

बनाते मिट्टी को सोना, मशहूर हैं हम ।

गर हक अपना हम मांगते,

लोग कहते मगरूर है हम ।।


लेखक:
नाम - संजीव कुमार
पता  - दिल्ली

©Sanjeev Kumar

#Flower Riya Rajput

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बेहाल मजदूर .... कहाँ गये वो लोग,  जो ये मकान बनाया करते थे । किया करते थे मजदूरी,  दो वक़्त की रोटी लाया करते थे ।। आज उन्होंने खाया,  या भूखे तो नहीं । या भूख से मजबूर होकर,  दिल से टूटे तो नहीं ।। क्या आज उनकी कोई सुध नहीं है,  या उनका कोई वजूद नहीं है । कोई जाकर देखे उनके बच्चे को,  शायद घर में उनके दूध नहीं है ।। समझ नहीं पाता हूँ जो देख रहा हूँ,  ये हकीकत है कि ये भ्रम है । कहीं कोई भूखा पड़ा है,  तो कहीं किसी की आँखे नम है ।। नाम - संजीव कुमार पता  - दिल्ली जन टाइम्स @ May 08, 2020 Share

#अनुभव #twilight  बेहाल मजदूर ....

कहाँ गये वो लोग, 

जो ये मकान बनाया करते थे ।

किया करते थे मजदूरी, 

दो वक़्त की रोटी लाया करते थे ।।
आज उन्होंने खाया, 
या भूखे तो नहीं ।
या भूख से मजबूर होकर, 
दिल से टूटे तो नहीं ।।
क्या आज उनकी कोई सुध नहीं है, 
या उनका कोई वजूद नहीं है ।
कोई जाकर देखे उनके बच्चे को, 
शायद घर में उनके दूध नहीं है ।।
समझ नहीं पाता हूँ जो देख रहा हूँ, 
ये हकीकत है कि ये भ्रम है ।
कहीं कोई भूखा पड़ा है, 
तो कहीं किसी की आँखे नम है ।।


नाम - संजीव कुमार
पता  - दिल्ली

जन टाइम्स @ May 08, 2020

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#twilight

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#friends #kavita #corona

#corona #nojoto #kavita #friends

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देशवासियो को एक पैगाम लिख दूँ, शहीदों के लिए जय जवान लिख दूँ। लिखने का हुनर नहीं है मुझमें, फिर भी वीरो के नाम एक कलाम लिख दूँ ।। गर्व है उस माँ पर, जो वतन के नाम अपने सपूत किये। लिखने को मेरे पास कोई शब्द नहीं, बस एक बार उस माँ को प्रणाम लिख दूँ ।। जिसने खायी सीने पर गोली, भूलकर अपने घर - परिवार को। किया रक्षा वतन को अपनी जान देकर, उनको है नमन, ये बारम्बार लिख दूँ ।। लाश आयी गाँव में जब, उनकी माँ - बहन लिपटकर रोई। पत्नी हुई बेसहारा, जिसने सबकुछ खोई ।। माँ ने बेटा खोई, बहन ने भाई। पत्नी ने पति खोई, कौन जाने पीर - पराई ।। लेखक: नाम - संजीव कुमार पता - दिल्ली

#कविता  देशवासियो को एक पैगाम लिख दूँ,
शहीदों के लिए जय जवान लिख दूँ।
लिखने का हुनर नहीं है मुझमें,
फिर भी वीरो के नाम एक कलाम लिख दूँ ।।

गर्व है उस माँ पर,
जो वतन के नाम अपने सपूत किये।
लिखने को मेरे पास कोई शब्द नहीं,
बस एक बार उस माँ को प्रणाम लिख दूँ ।। 

जिसने खायी सीने पर गोली,
भूलकर अपने घर - परिवार को।
किया रक्षा वतन को अपनी जान देकर,
उनको है नमन, ये बारम्बार लिख दूँ ।।

लाश आयी गाँव में जब,
उनकी माँ - बहन लिपटकर रोई।
पत्नी हुई बेसहारा,
जिसने सबकुछ खोई ।।

माँ ने बेटा खोई,
बहन ने भाई।
पत्नी ने पति खोई,
कौन जाने पीर - पराई ।।                                                  
लेखक:
नाम - संजीव कुमार
पता  - दिल्ली

देशवासियो को एक पैगाम लिख दूँ, शहीदों के लिए जय जवान लिख दूँ। लिखने का हुनर नहीं है मुझमें, फिर भी वीरो के नाम एक कलाम लिख दूँ ।। गर्व है उस माँ पर, जो वतन के नाम अपने सपूत किये। लिखने को मेरे पास कोई शब्द नहीं, बस एक बार उस माँ को प्रणाम लिख दूँ ।। जिसने खायी सीने पर गोली, भूलकर अपने घर - परिवार को। किया रक्षा वतन को अपनी जान देकर, उनको है नमन, ये बारम्बार लिख दूँ ।। लाश आयी गाँव में जब, उनकी माँ - बहन लिपटकर रोई। पत्नी हुई बेसहारा, जिसने सबकुछ खोई ।। माँ ने बेटा खोई, बहन ने भाई। पत्नी ने पति खोई, कौन जाने पीर - पराई ।। लेखक: नाम - संजीव कुमार पता - दिल्ली

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#nojotonews

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