वो जाने क्यों मुझे यहाँ वहाँ ढूंढता है.. अक्सर मुझ | हिंदी Shayari

"वो जाने क्यों मुझे यहाँ वहाँ ढूंढता है.. अक्सर मुझसे मेरा पता पूछता है.. क्या कहूँ की यूँ तो मेरा पता ठिकाना है कहीं नहीं.. मगर देखना जो चाहे मुझे तो हर कहीं मैं हीं,मैं हूँ.. आँखों में कुछ ख़्वाब जो रह गए अधूरे, कुछ जो पलते रहे पूरे, उन तमाम कामिल-ना काबिल ख़्वाबों में,मैं हूँ.. शबनम से भीगे फूलों की नमी में, जीवन में आजीवन रह जाने वाली कमी में,मैं हूँ.. बादलों में तुम्हारे तसव्वुर से बनते बिगड़ते चेहरों में मैं हूँ,तुम्हारी लिखी ग़ज़लों के बहरों में,मैं हूँ.. हाथों से फिसलती बारिश की बूंदों की नमी में, खिले जो गुल कहीं प्यार का उस सरज़मी में,मैं हूँ.. जो छू कर तुमको गुज़रे उन हवाओ में, जो अनसुनी रह गई तुम्हारी उन सदाओ में,मैं हूँ.. तीरगी से लड़ कर होने वाली उम्मीदों की भोर में, सागर के लहरों के शोर में,मैं हूँ.. अब क्या कहूँ की मेरा पता ठिकाना कहॉ है, देखना जो चाहे मुझे तो हर कहीं मैं हीं,मैं हूँ.. ©Chanchal Chaturvedi"

 वो जाने क्यों मुझे यहाँ वहाँ ढूंढता है..
अक्सर मुझसे मेरा पता पूछता है..

क्या कहूँ की यूँ तो मेरा पता ठिकाना है कहीं नहीं..
मगर देखना जो चाहे मुझे तो हर कहीं मैं हीं,मैं हूँ..

आँखों में कुछ ख़्वाब जो रह गए अधूरे,
कुछ जो पलते रहे पूरे,
उन तमाम कामिल-ना काबिल ख़्वाबों में,मैं हूँ..

शबनम से भीगे फूलों की नमी में,
जीवन में आजीवन रह जाने वाली कमी में,मैं हूँ..

बादलों में तुम्हारे तसव्वुर से बनते बिगड़ते 
चेहरों में मैं हूँ,तुम्हारी लिखी ग़ज़लों के बहरों में,मैं हूँ..

हाथों से फिसलती बारिश की बूंदों की नमी में,
खिले जो गुल कहीं प्यार का उस सरज़मी में,मैं हूँ..

जो छू कर तुमको गुज़रे उन हवाओ में,
जो अनसुनी रह गई तुम्हारी उन सदाओ में,मैं हूँ..

तीरगी से लड़ कर होने वाली उम्मीदों की भोर में,
सागर के लहरों के शोर में,मैं हूँ..

अब क्या कहूँ की मेरा पता ठिकाना कहॉ है,
देखना जो चाहे मुझे तो हर कहीं मैं हीं,मैं हूँ..

©Chanchal Chaturvedi

वो जाने क्यों मुझे यहाँ वहाँ ढूंढता है.. अक्सर मुझसे मेरा पता पूछता है.. क्या कहूँ की यूँ तो मेरा पता ठिकाना है कहीं नहीं.. मगर देखना जो चाहे मुझे तो हर कहीं मैं हीं,मैं हूँ.. आँखों में कुछ ख़्वाब जो रह गए अधूरे, कुछ जो पलते रहे पूरे, उन तमाम कामिल-ना काबिल ख़्वाबों में,मैं हूँ.. शबनम से भीगे फूलों की नमी में, जीवन में आजीवन रह जाने वाली कमी में,मैं हूँ.. बादलों में तुम्हारे तसव्वुर से बनते बिगड़ते चेहरों में मैं हूँ,तुम्हारी लिखी ग़ज़लों के बहरों में,मैं हूँ.. हाथों से फिसलती बारिश की बूंदों की नमी में, खिले जो गुल कहीं प्यार का उस सरज़मी में,मैं हूँ.. जो छू कर तुमको गुज़रे उन हवाओ में, जो अनसुनी रह गई तुम्हारी उन सदाओ में,मैं हूँ.. तीरगी से लड़ कर होने वाली उम्मीदों की भोर में, सागर के लहरों के शोर में,मैं हूँ.. अब क्या कहूँ की मेरा पता ठिकाना कहॉ है, देखना जो चाहे मुझे तो हर कहीं मैं हीं,मैं हूँ.. ©Chanchal Chaturvedi

#मैं_हूँ #Chanchal_mann #nazm #Love
#thepredator

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