ज़िन्दगी का खेल, पास कोई फेल, चल रही सरपट, | हिंदी कविता

"ज़िन्दगी का खेल, पास कोई फेल, चल रही सरपट, कहीं ठेलम-ठेल, हो चुकी बोझिल, हमसफ़र बेमेल, है सफ़र अंजान, कहीं रेलमपेल, हाथ में हथियार, कोई बैठा जेल, कर चुके अनुमान, निकलता है तेल, गुंजन नदी तट का, असंभव है मेल, -शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' समस्तीपुर ©Shashi Bhushan Mishra"

 ज़िन्दगी का खेल, 
पास  कोई   फेल, 

चल  रही  सरपट, 
कहीं  ठेलम-ठेल,

हो चुकी  बोझिल, 
हमसफ़र   बेमेल, 

है सफ़र अंजान, 
कहीं   रेलमपेल, 

हाथ  में  हथियार, 
कोई   बैठा  जेल, 

कर चुके अनुमान, 
निकलता है  तेल,

गुंजन नदी तट का,
असंभव   है  मेल,
-शशि भूषण मिश्र 
'गुंजन' समस्तीपुर

©Shashi Bhushan Mishra

ज़िन्दगी का खेल, पास कोई फेल, चल रही सरपट, कहीं ठेलम-ठेल, हो चुकी बोझिल, हमसफ़र बेमेल, है सफ़र अंजान, कहीं रेलमपेल, हाथ में हथियार, कोई बैठा जेल, कर चुके अनुमान, निकलता है तेल, गुंजन नदी तट का, असंभव है मेल, -शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' समस्तीपुर ©Shashi Bhushan Mishra

#ज़िन्दगी का खेल#

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