ज़िन्दगी का खेल,
पास कोई फेल,
चल रही सरपट,
कहीं ठेलम-ठेल,
हो चुकी बोझिल,
हमसफ़र बेमेल,
है सफ़र अंजान,
कहीं रेलमपेल,
हाथ में हथियार,
कोई बैठा जेल,
कर चुके अनुमान,
निकलता है तेल,
गुंजन नदी तट का,
असंभव है मेल,
-शशि भूषण मिश्र
'गुंजन' समस्तीपुर
©Shashi Bhushan Mishra
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