बस यही हाल हैं दिल दरिया का। चट्टानों से टक्कर भी | हिंदी कविता

"बस यही हाल हैं दिल दरिया का। चट्टानों से टक्कर भी खुद खाते हैं। शांत भी खुद होते हैं। चिंता ओ के उछाल उबाल को भितरभी समाते हैं। खारापन कितना भी हो भीतर, सीपी से मोती भी बनाना हैं। मन दरिया जो हैं, सभ को पार भी लगाना हैं। निगल गया हमारे सपनो को, ये दोष भी उठाना है। चिंतन शास्त्री ©Chintan Shastri"

 बस यही हाल हैं दिल दरिया का। चट्टानों से टक्कर भी खुद खाते हैं। शांत भी खुद होते हैं। चिंता ओ के उछाल उबाल को भितरभी समाते हैं। खारापन कितना भी हो भीतर, सीपी से मोती भी बनाना हैं।
मन दरिया जो हैं,
सभ को पार भी लगाना हैं।
निगल गया हमारे सपनो को,
 ये दोष भी उठाना है।

चिंतन शास्त्री

©Chintan Shastri

बस यही हाल हैं दिल दरिया का। चट्टानों से टक्कर भी खुद खाते हैं। शांत भी खुद होते हैं। चिंता ओ के उछाल उबाल को भितरभी समाते हैं। खारापन कितना भी हो भीतर, सीपी से मोती भी बनाना हैं। मन दरिया जो हैं, सभ को पार भी लगाना हैं। निगल गया हमारे सपनो को, ये दोष भी उठाना है। चिंतन शास्त्री ©Chintan Shastri

dil dariya poem

#seaside

People who shared love close

More like this

Trending Topic