केकर साथ रही के बिछुड़ी, आज करोना काल में । बच्चा

"केकर साथ रही के बिछुड़ी, आज करोना काल में । बच्चा बूढ़ युवक जनमतुआ, जाता यम के गाल में ।। हदस हिलावत बा सभके मन , घरी घरी परिवार के । अंदर के हिम्मत थाकल बा, जइसे जन भूचाल में ।। अदिमी अदिमी से बोलत बा , दो गज दूरी हट के । मास्क और सेनिटाइजर से , सजे बराती हॉल में ।। ना मिलला में खुशी बुझाता, ना बिछुड़े अवसाद हीं । ना सुख चैन पिता घर बाटे, ना रसगर ससुराल में ।। मोटर गाड़ी बंद,  बंद बा ,  दुपहिया फटफटिया भी । पैदल चलला पर चाभुक से , बाम परेला खाल में ।। सबसे बढ़िया बा ए भइया, अपने आपन सोचल जाय । ना तऽ मय सवांग फँस जाई,  चितकबरा के जाल में ।। ~ कन्हैया प्रसाद रसिक ~ ©Kanhaya Prasad Tiwari Rasik"

 केकर साथ रही के बिछुड़ी, आज करोना काल में ।
बच्चा बूढ़ युवक जनमतुआ, जाता यम के गाल में ।।
हदस हिलावत बा सभके मन , घरी घरी परिवार के ।
अंदर के हिम्मत थाकल बा, जइसे जन भूचाल में ।।
अदिमी अदिमी से बोलत बा , दो गज दूरी हट के ।
मास्क और सेनिटाइजर से , सजे बराती हॉल में ।।
ना मिलला में खुशी बुझाता, ना बिछुड़े अवसाद हीं ।
ना सुख चैन पिता घर बाटे, ना रसगर ससुराल में ।।
मोटर गाड़ी बंद,  बंद बा ,  दुपहिया फटफटिया भी ।
पैदल चलला पर चाभुक से , बाम परेला खाल में ।।
सबसे बढ़िया बा ए भइया, अपने आपन सोचल जाय ।
ना तऽ मय सवांग फँस जाई,  चितकबरा के जाल में ।।
~  कन्हैया प्रसाद रसिक  ~

©Kanhaya Prasad Tiwari Rasik

केकर साथ रही के बिछुड़ी, आज करोना काल में । बच्चा बूढ़ युवक जनमतुआ, जाता यम के गाल में ।। हदस हिलावत बा सभके मन , घरी घरी परिवार के । अंदर के हिम्मत थाकल बा, जइसे जन भूचाल में ।। अदिमी अदिमी से बोलत बा , दो गज दूरी हट के । मास्क और सेनिटाइजर से , सजे बराती हॉल में ।। ना मिलला में खुशी बुझाता, ना बिछुड़े अवसाद हीं । ना सुख चैन पिता घर बाटे, ना रसगर ससुराल में ।। मोटर गाड़ी बंद,  बंद बा ,  दुपहिया फटफटिया भी । पैदल चलला पर चाभुक से , बाम परेला खाल में ।। सबसे बढ़िया बा ए भइया, अपने आपन सोचल जाय । ना तऽ मय सवांग फँस जाई,  चितकबरा के जाल में ।। ~ कन्हैया प्रसाद रसिक ~ ©Kanhaya Prasad Tiwari Rasik

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