जाने कैसे लोग मिलेंगे,
जाने क्या क्या बातें होंगी।
गले मिलेंगे बारी बारी,
या पीछे से घाते होगी।
नये शहर में आ ही गये जब,
शायद दिन में रातें होंगी।
शीशे की दीवारें होंगी,
कागज के सब फूल खिलेंगे।
खुश्बू के मादक झोंकों में,
शुष्क हृदय के तार हिलेंगे।
आंखों से झरते अश्कों से,
सावन की बरसातें होंगी।
जाने क्या क्या बातें होंगी।
©Manish ghazipuri
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