Black उनके घर, मेरा भी आना जाना था,
रिश्तों की थी, तुरपाई,बेहतर ताना बाना था।
सांझ ढले,बैठक में उनके,हंसी ठहाके होते थे,
होती थी तो नई कहानी,पर अंदाज पुराना था।
वक्त के हाथों, जाने कैसे,हम इतने मजबूर हुए,
पास पास थे,जितने ही हम,उतने ही हम दूर हुए।
अब भी शाम,हुआ करती है,अब भी सूरज ढलता है,
रिश्तों की, आवाजाही में,थक कर चकनाचूर हुए।
एक गवाही अभी है बाकी,एक अदालत बाकी है,
एक मेड़ के दो छोरों पर,अभी रवायत बाकी हैं।
चले मुंसफी में हम दोनों, अपनी अपनी बात कहे,
एक कहानी शुरू हुई है, और कहानी बाकी हैं।
©Manish ghazipuri
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