नहीं चाहिए ऐसा जीवन
नहीं चाहिए ऐसा जीवन,
जिसमें दर्द बेशुमार हो।
आतंकों से भरा ये जीवन,
जहाँ तड़पा इन्साफ हो।
दुष्कर्मों की लगी झड़ी है,
कहाँ रहा विश्वास है?
संकट की जो ये घड़ी है,
नहीं बचा ऐहसास है।
चेहरे पर सब मुखौटा पहनें,
कैसे अब पहचान हो?
खून की लगी नदियाँ बहनें,
क्यों बने अनजान हो?
दौलत की खातिर देखो,
बिकता जो ईमान है।
कैसे मजबूत होगा देखो?
ये जो हिन्दुस्तान है।
नहीं चाहिए ऐसा जीवन,
जिसमें रक्त शृंगार हो।
हैवानियत में डूबा जीवन,
पाप का ये आधार हो।
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देवेश दीक्षित
स्वरचित एवं मौलिक
©Devesh Dixit
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नहीं चाहिए ऐसा जीवन
नहीं चाहिए ऐसा जीवन,
जिसमें दर्द बेशुमार हो।
आतंकों से भरा ये जीवन,
जहाँ तड़पा इन्साफ हो।