आंखें दर्द से भरी
यादों का बस्ता सर पे लिए
बरसातो मे जो नंगे पांव चले
दूर इस दरियाव के छाव चले
हमने खोया है जो बचपन की गठरी को
उसको उठा कर अपने गांव चले
मुड़कर न देखेंगे फिर इस चमक को
चमक जिससे चौंधिया हमारे आंख गए
बस कुछ दिन और करते करते
सब बीता है छोड़ो चलो बस अब लौट के यार चले
नही बहना अब जिधर नदी को नाव कहे
गुजार ले कुछ पल और फिर सहर को यार चले
लौट के गांव चले चलो ना यार चले
©Arun kumar
#dawnn