एक पेड़ हुआ करता था
गांव के उस मोड़ पर
आते जाते राहगीरों को
मुस्कुराते देखा करता था
तेज धूप में भी
खड़ा रहता था सर उठाये
सबको छांव बांटा करता था
तेज़ तूफानी बारिशों में
लड़ते झगड़ते हवाओं से
आसमां को रुलाया करता था
बूढ़ा हो गया था शायद
पर तेवर नहीं बदले ज़नाब के
तब भी हवाओं के संग संग
गुनगुनाता झुमा करता था
कुछ दिन बीते कुछ लोग आए
कुछ चिन्ह लगाया कुछ नाप लिया
कुछ दिन बीते फिर नज़र पड़ी
टूट गया था गर्व उसका
कटा पड़ा था चौड़ी सड़क किनारे
यही सिला था शायद उसका
बिखर गया था सड़क किनारे
गांव के उस मोड़ पर
एक पेड़ हुआ करता था
रहता था जो ठाठ से.।
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बरगद
@SuSHiL
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