मुद्दतों पहले जो डूबी थी वो पूँजी मिल गयी,
जो कभी दरया में फेंकी थी वो नेकी मिल गयी,,
ख़ुदकुशी करने पर आमादा थी नाकामी मेरी,
फिर मुझे दीवार पर चढ़ती ये चींटी मिल गयी,,
मैं इसे इनाम समझूँ या सज़ा का नाम दूँ,
उंगलियां कटते ही तोहफे में अंगूठी मिल गयी,,
मैं इसी मिट्टी से उठा था बबूला की तरह,
और फिर एक दिन मिट्टी में मिट्टी मिल गयी,,
फिर किसी ने लष्मी देवी को ठोकर मार दी,
आज कूड़ेदान से फिर एक बच्ची मिल गयी
मुनव्वर राना✍🏻