चार दिन बीत गए,
चार लोगों के लिए।।
रीत से प्रीत गए,
चार लोगों के लिए।।
जिंदगी जंग सही,
हम नही लड़ पाए।
हार कर जीत गए,
चार लोगों के लिए।।
चैन और नींद गई,
दुख गए सुख गए।
मन के सब मीत गए,
चार लोगों के लिए।।
शेर गजलें सभी,
नज़्म कताएं गई।
स्वर व संगीत गए,
चार लोगों के लिए।।
तुम गए,वो गए।
स्वप्न भी खो गए।
प्रेम के गीत गए,
चार लोगो के लिए।।
दिल गया सांस गई,
खुद से थी,आस गई।
रस्मों के भीत गए,
चार लोगों के लिए।।
चार दिन बीत गए,
चार लोगों के लिए।
निर्भय चौहान
©निर्भय चौहान
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