जख्म भरकर बढ़ गया हु आगे
जो कुरेदे गए वो घाव नहीं इतिहास का अनकहा किस्सा है
भूलने की ख्वाइश किसे होती है
जो रह गया है, जहन में उसे जानने के लिए
आदमी भूलता है कुछ पाने के लिए
सिलवटो के निशाँ खोलते है राज मेरे हमराज के
जिसे छुपाया था किताबो में मैंने मोर पंख की तरह
लिखे तो बहुत कुछ मगर कौन पढ़ेगा उसे
मेरे शब्द दफ़न है डायरी में तबाह खण्डर की तरह
©Prabhash Chandra jha