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मीर का शहर और गालिब के गली से हु दिल की दिल्ली और तख्त की जमी से हु
Prabhash Chandra jha
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भीगी भीगी सड़के , शाम पूरे शबाब में है एक मै बिखरा बिखरा और तुम्हारी ग़ज़ल किताब में है झुकी झुकी सी उनकी नज़रे सजदा करती हिजाब में है तो कियु न हम भी उनको दखो कबसे उनके ख्वाब में है वो महलों की है रानी .चाल चंचल शोख जवानी कियुं न लिखें हम उन पर कविता हम भी शायर है ख़ानदानी बोध गया में हो ध्यान या भागलपुर पुर में गंगा स्नान यही पर महिलाओ की मधुबनी चित्रकारी यही पर UPSC के लिए संघर्ष जारी इतनी कलाओं सें सुसज्जित देखो हम बिहार में हैं ©Prabhash Chandra jha
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कुछ ख्वाब सजाये रखा है घर की चार दिवारी में मन को समझाए रखा है घर की चार दिवारी में सस्ते महंगे सामानों पर धूल जमी ये कहती है सब कुछ लुटाये रखा है घर की चार दिवारी में बेटे की शैतानी हो बेटी का भोलापन माँ की एक कोर से तृप्त हो जाता अन्तर्मन घटनाओं का कालचक्र चलता घर की चार दिवारी में एक उम्र संभाले रखा है घर की चार दिवारी में कुछ ख्वाब सजाये रखा है घर की चार दिवारी में ©Prabhash Chandra jha
32 साल से भुला दी गईं आवाज हु मैं वादियों में दी गई आहुति लोकतंत्र पर लगा कलंक का ताज हु मै कश्यप का तप , हवन की आग वेदों का ज्ञान पंडितो के घर का चिराग इन बुझी हुइ राखो का अंबार हु मैं डरे हुए समुदाय के डर का शिकार हूं मैं ©Prabhash Chandra jha
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