Prabhash Chandra jha

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मीर का शहर और गालिब के गली से हु दिल की दिल्ली और तख्त की जमी से हु

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उठो हिन्द के सैनिक.....मातृभूमि करे पुकार

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 जख्म भरकर बढ़ गया हु आगे 
जो कुरेदे गए वो घाव नहीं इतिहास का अनकहा किस्सा है 

भूलने की ख्वाइश किसे होती है
जो रह गया है, जहन में उसे जानने के लिए 
आदमी भूलता है कुछ पाने के लिए


सिलवटो के निशाँ  खोलते  है राज मेरे हमराज के
जिसे छुपाया था  किताबो में  मैंने मोर पंख की तरह
लिखे तो बहुत कुछ मगर कौन पढ़ेगा उसे 
मेरे शब्द दफ़न है डायरी में तबाह खण्डर की तरह

©Prabhash Chandra jha

जख्म भरकर बढ़ गया हु आगे जो कुरेदे गए वो घाव नहीं इतिहास का अनकहा किस्सा है भूलने की ख्वाइश किसे होती है जो रह गया है, जहन में उसे जानने के लिए आदमी भूलता है कुछ पाने के लिए सिलवटो के निशाँ खोलते है राज मेरे हमराज के जिसे छुपाया था किताबो में मैंने मोर पंख की तरह लिखे तो बहुत कुछ मगर कौन पढ़ेगा उसे मेरे शब्द दफ़न है डायरी में तबाह खण्डर की तरह ©Prabhash Chandra jha

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भीगी भीगी सड़के , शाम पूरे शबाब में है एक मै बिखरा बिखरा और तुम्हारी ग़ज़ल किताब में है झुकी झुकी सी उनकी नज़रे सजदा करती हिजाब में है तो कियु न हम भी उनको दखो कबसे उनके ख्वाब में है वो महलों की है रानी .चाल चंचल शोख जवानी कियुं न लिखें हम उन पर कविता हम भी शायर है ख़ानदानी बोध गया में हो ध्यान या भागलपुर पुर में गंगा स्नान यही पर महिलाओ की मधुबनी चित्रकारी यही पर UPSC के लिए संघर्ष जारी इतनी कलाओं सें सुसज्जित देखो हम बिहार में हैं ©Prabhash Chandra jha

#शायरी #grey  भीगी भीगी  सड़के , शाम पूरे  शबाब में है
एक मै बिखरा बिखरा  और तुम्हारी ग़ज़ल  किताब में है
 
झुकी झुकी सी उनकी नज़रे
सजदा करती हिजाब में है
तो कियु न हम भी उनको दखो 
कबसे उनके ख्वाब में है


वो महलों की है रानी .चाल चंचल शोख जवानी
कियुं न लिखें हम उन पर कविता
 हम भी शायर है ख़ानदानी

बोध गया में हो ध्यान
या भागलपुर पुर में गंगा स्नान
यही पर महिलाओ की मधुबनी चित्रकारी
यही पर UPSC के लिए संघर्ष जारी

इतनी कलाओं सें सुसज्जित 
देखो हम बिहार में हैं

©Prabhash Chandra jha

#grey

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#शायरी  भीगी भीगी  सड़के , शाम पूरे  शबाब में है
एक मै बिखरा बिखरा  और तुम्हारी ग़ज़ल  किताब में है
 
                       झुकी झुकी सी उनकी नज़रे
                       सजदा करती हिजाब में है
                  तो कियु न हम भी उनको दखो 
                       कबसे उनके ख्वाब में है

वो महलों की है रानी .चाल चंचल शोख जवानी
कियुं न लिखें हम उन पर कविता
 हम भी शायर है ख़ानदानी

                      बोध गया में हो ध्यान
              या भागलपुर पुर में गंगा स्नान
            यही पर महिलाओ की मधुबनी चित्रकारी
           यही पर UPSC के लिए संघर्ष जारी
इतनी कलाओं सें सुसज्जित 
देखो हम बिहार में हैं

©Prabhash Chandra jha

भीगी भीगी सड़के , शाम पूरे शबाब में है एक मै बिखरा बिखरा और तुम्हारी ग़ज़ल किताब में है झुकी झुकी सी उनकी नज़रे सजदा करती हिजाब में है तो कियु न हम भी उनको दखो कबसे उनके ख्वाब में है वो महलों की है रानी .चाल चंचल शोख जवानी कियुं न लिखें हम उन पर कविता हम भी शायर है ख़ानदानी बोध गया में हो ध्यान या भागलपुर पुर में गंगा स्नान यही पर महिलाओ की मधुबनी चित्रकारी यही पर UPSC के लिए संघर्ष जारी इतनी कलाओं सें सुसज्जित देखो हम बिहार में हैं ©Prabhash Chandra jha

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कुछ ख्वाब सजाये रखा है घर की चार दिवारी में मन को समझाए रखा है घर की चार दिवारी में सस्ते महंगे सामानों पर धूल जमी ये कहती है सब कुछ लुटाये रखा है घर की चार दिवारी में बेटे की शैतानी हो बेटी का भोलापन माँ की एक कोर से तृप्त हो जाता अन्तर्मन घटनाओं का कालचक्र चलता घर की चार दिवारी में एक उम्र संभाले रखा है घर की चार दिवारी में कुछ ख्वाब सजाये रखा है घर की चार दिवारी में ©Prabhash Chandra jha

#कविता #चार  कुछ ख्वाब सजाये रखा है 
घर की चार दिवारी में
मन को समझाए रखा है
घर की चार दिवारी में

सस्ते महंगे सामानों पर धूल जमी ये कहती है
सब कुछ लुटाये रखा है 
घर की चार दिवारी में

                                         बेटे की शैतानी हो बेटी का भोलापन
                                                माँ की एक कोर से तृप्त हो जाता अन्तर्मन

                घटनाओं का कालचक्र चलता  घर की  चार दिवारी में
एक उम्र संभाले रखा है घर की चार दिवारी में
कुछ ख्वाब सजाये रखा है  
घर की चार दिवारी में

©Prabhash Chandra jha

32 साल से भुला दी गईं आवाज हु मैं वादियों में दी गई आहुति लोकतंत्र पर लगा कलंक का ताज हु मै कश्यप का तप , हवन की आग वेदों का ज्ञान पंडितो के घर का चिराग इन बुझी हुइ राखो का अंबार हु मैं डरे हुए समुदाय के डर का शिकार हूं मैं ©Prabhash Chandra jha

#कविता #KashmiriFiles  32 साल से भुला दी गईं आवाज हु मैं
वादियों में दी गई आहुति
लोकतंत्र पर लगा कलंक का ताज हु मै 

कश्यप का तप , हवन की आग
वेदों का ज्ञान पंडितो के घर का चिराग
इन बुझी हुइ राखो का अंबार हु मैं
डरे हुए समुदाय के डर का शिकार हूं मैं

©Prabhash Chandra jha
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