भोर बेला ,नदी तट की घंटियों का नाद। चोट खा कर जग उ | हिंदी Poetry

"भोर बेला ,नदी तट की घंटियों का नाद। चोट खा कर जग उठा सोया हुआ अवसाद। नहीं, मुझ को नहीं अपने दर्द का अभिमान--- मानता हूँ मैं पराजय है तुम्हारी याद। . ©Arpit Mishra"

 भोर बेला ,नदी तट की घंटियों का नाद।
चोट खा कर जग उठा सोया हुआ अवसाद।
नहीं, मुझ को नहीं अपने दर्द का अभिमान---
मानता हूँ मैं पराजय है तुम्हारी याद।








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©Arpit Mishra

भोर बेला ,नदी तट की घंटियों का नाद। चोट खा कर जग उठा सोया हुआ अवसाद। नहीं, मुझ को नहीं अपने दर्द का अभिमान--- मानता हूँ मैं पराजय है तुम्हारी याद। . ©Arpit Mishra

अज्ञेय

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