Arpit Mishra

Arpit Mishra Lives in Indore, Madhya Pradesh, India

अर्ध सत्य

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भोर बेला ,नदी तट की घंटियों का नाद। चोट खा कर जग उठा सोया हुआ अवसाद। नहीं, मुझ को नहीं अपने दर्द का अभिमान--- मानता हूँ मैं पराजय है तुम्हारी याद। . ©Arpit Mishra

 भोर बेला ,नदी तट की घंटियों का नाद।
चोट खा कर जग उठा सोया हुआ अवसाद।
नहीं, मुझ को नहीं अपने दर्द का अभिमान---
मानता हूँ मैं पराजय है तुम्हारी याद।








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©Arpit Mishra

अज्ञेय

12 Love

मैं शून्य पे सवार हूँ बेअदब सा मैं खुमार हूँ अब मुश्किलों से क्या डरूं मैं खुद कहर हज़ार हूँ मैं शून्य पे सवार हूँ मैं शून्य पे सवार हूँ उंच-नीच से परे मजाल आँख में भरे मैं लड़ रहा हूँ रात से मशाल हाथ में लिए न सूर्य मेरे साथ है तो क्या नयी ये बात है वो शाम होता ढल गया वो रात से था डर गया मैं जुगनुओं का यार हूँ मैं शून्य पे सवार हूँ . ©Arpit Mishra

 मैं शून्य पे सवार हूँ
बेअदब सा मैं खुमार हूँ
अब मुश्किलों से क्या डरूं
मैं खुद कहर हज़ार हूँ

मैं शून्य पे सवार हूँ
मैं शून्य पे सवार हूँ

उंच-नीच से परे
मजाल आँख में भरे
मैं लड़ रहा हूँ रात से
मशाल हाथ में लिए
न सूर्य मेरे साथ है
तो क्या नयी ये बात है
वो शाम होता ढल गया
वो रात से था डर गया

मैं जुगनुओं का यार हूँ
मैं शून्य पे सवार हूँ






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©Arpit Mishra

मैं शून्य पे सवार हूँ बेअदब सा मैं खुमार हूँ अब मुश्किलों से क्या डरूं मैं खुद कहर हज़ार हूँ मैं शून्य पे सवार हूँ मैं शून्य पे सवार हूँ उंच-नीच से परे मजाल आँख में भरे मैं लड़ रहा हूँ रात से मशाल हाथ में लिए न सूर्य मेरे साथ है तो क्या नयी ये बात है वो शाम होता ढल गया वो रात से था डर गया मैं जुगनुओं का यार हूँ मैं शून्य पे सवार हूँ . ©Arpit Mishra

17 Love

शून्य हृदय में प्रेम-जलद-माला कब फिर घिर आवेगी? वर्षा इन आँखों से होगी, कब हरियाली छावेगी? लम्बी विश्व कथा में सुख की निद्रा-सी इन आँखों में- सरस मधुर छवि शान्त तुम्हारी कब आकर बस जावेगी? . ©Arpit Mishra

 शून्य हृदय में प्रेम-जलद-माला कब फिर घिर आवेगी?
वर्षा इन आँखों से होगी, कब हरियाली छावेगी?
लम्बी विश्व कथा में सुख की निद्रा-सी इन आँखों में-
सरस मधुर छवि शान्त तुम्हारी कब आकर बस जावेगी?










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©Arpit Mishra

jayshankar prasad

10 Love

चारुचंद्र की चंचल किरणें, खेल रहीं हैं जल थल में, स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई है अवनि और अम्बरतल में। पुलक प्रकट करती है धरती, हरित तृणों की नोकों से, मानों झूम रहे हैं तरु भी, मन्द पवन के झोंकों से ॥ . ©Arpit Mishra

#standout  चारुचंद्र की चंचल किरणें, 
खेल रहीं हैं जल थल में, 
स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई है 
अवनि और अम्बरतल में। 
पुलक प्रकट करती है धरती, 
हरित तृणों की नोकों से, 
मानों झूम रहे हैं तरु भी, 
मन्द पवन के झोंकों से ॥







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©Arpit Mishra

#standout

10 Love

तुलसी नर का क्या बड़ा, समय बड़ा बलवान। भीलां लूटी गोपियाँ, वही अर्जुन वही बाण॥ . ©Arpit Mishra

 तुलसी नर का क्या बड़ा, समय बड़ा बलवान।

भीलां लूटी गोपियाँ, वही अर्जुन वही बाण॥










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©Arpit Mishra

तुलसी

10 Love

हां! आज शिक्षा मार्ग भी संकीर्ण होकर क्लिष्ट है, कुलपति सहित उन गुरुकुलो का ध्यान ही अवशिष्ट है। बिकने लगी विद्या यहां अब , शक्ति हो तो क्रय करो , यदि शुल्क आदि न दे सको तो मूर्ख रहकर ही मरो । । ©Arpit Mishra

 हां! आज शिक्षा मार्ग भी संकीर्ण होकर क्लिष्ट है,
कुलपति सहित उन गुरुकुलो का ध्यान ही अवशिष्ट है।
बिकने लगी विद्या यहां अब , शक्ति हो तो क्रय करो ,
यदि शुल्क आदि न दे सको तो मूर्ख रहकर ही मरो ।










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©Arpit Mishra

भारत भारती

8 Love

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