क्या करूँ बाते तुम्हारी मन यहाँ बेकल पड़ा है। नैन | हिंदी कविता

"क्या करूँ बाते तुम्हारी मन यहाँ बेकल पड़ा है। नैन के जल में छुपाकर रखे थे कुछ ख्वाब बाकी भोर का सपना सुहाना टूट कर अब पास आयी क्या करूँ बाते तुम्हारी मन यहाँ बेकल पड़ा है। चंद लम्हें जिन्दगी से साथ में हमने चुराए दोपहर की धूप में वो झिलमिला के पास आयी क्या करूँ बाते तुम्हारी मन यहाँ बेकल पड़ा है। ©Sadhana singh"

 क्या करूँ बाते तुम्हारी
मन यहाँ बेकल पड़ा है।
नैन के जल में छुपाकर 
रखे थे कुछ ख्वाब बाकी
भोर का सपना सुहाना
टूट कर अब पास आयी
क्या करूँ बाते तुम्हारी
मन यहाँ बेकल पड़ा है।
चंद लम्हें जिन्दगी से
साथ में हमने चुराए 
दोपहर की धूप में वो
झिलमिला के पास आयी
क्या करूँ बाते तुम्हारी
मन यहाँ बेकल पड़ा है।

©Sadhana singh

क्या करूँ बाते तुम्हारी मन यहाँ बेकल पड़ा है। नैन के जल में छुपाकर रखे थे कुछ ख्वाब बाकी भोर का सपना सुहाना टूट कर अब पास आयी क्या करूँ बाते तुम्हारी मन यहाँ बेकल पड़ा है। चंद लम्हें जिन्दगी से साथ में हमने चुराए दोपहर की धूप में वो झिलमिला के पास आयी क्या करूँ बाते तुम्हारी मन यहाँ बेकल पड़ा है। ©Sadhana singh

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