जंग पर निकलता हूं ढाल भूल जाता हूं मै अजीब शिका | हिंदी शायरी

"जंग पर निकलता हूं ढाल भूल जाता हूं मै अजीब शिकारी हूं जाल भूल जाता हूं । वस्ल में भी रहती है भूलने की बीमारी, होंठ चूम आता हूं गाल भूल जाता हूं । ©H.verm@"

 जंग पर निकलता हूं ढाल भूल  जाता  हूं 
मै अजीब शिकारी हूं जाल भूल जाता हूं ।
वस्ल में भी रहती है  भूलने  की  बीमारी,
होंठ चूम आता हूं गाल  भूल  जाता  हूं ।

©H.verm@

जंग पर निकलता हूं ढाल भूल जाता हूं मै अजीब शिकारी हूं जाल भूल जाता हूं । वस्ल में भी रहती है भूलने की बीमारी, होंठ चूम आता हूं गाल भूल जाता हूं । ©H.verm@

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