छोटे से मकान में रहता हूँ, जिंदगी मर्जी से जीता हू | हिंदी कविता

"छोटे से मकान में रहता हूँ, जिंदगी मर्जी से जीता हूँ, भरकर आँखों में मोहब्बत, चेहरा नूरानी रखता हूँ। ख़्वाब नये मैं बुनता हूँ, पहले सुकून चुनता हूँ, भरकर दिल में इबादत, इश्क भरा दिल रखता हूँ। थोड़ा तेज मैं चलता हूँ, सबकी चाल समझता हूँ, रखकर रूहानी आदत, आदतें खास रखता हूँ। सुलझा सुलझा दिखता हूँ, किस्से प्यार के लिखता हूँ, रखकर तुम्हारी चाहत, जज्बात संभाले रखता हूँ। डॉ आनंद दाधीच 'दधीचि' 🇮🇳 ©Anand Dadhich"

 छोटे से मकान में रहता हूँ,
जिंदगी मर्जी से जीता हूँ,
भरकर आँखों में मोहब्बत,
चेहरा नूरानी रखता हूँ।

ख़्वाब नये मैं बुनता हूँ,
पहले सुकून चुनता हूँ,
भरकर दिल में इबादत,
इश्क भरा दिल रखता हूँ।

थोड़ा तेज मैं चलता हूँ,
सबकी चाल समझता हूँ,
रखकर रूहानी आदत,
आदतें खास रखता हूँ।

सुलझा सुलझा दिखता हूँ,
किस्से प्यार के लिखता हूँ,
रखकर तुम्हारी चाहत,
जज्बात संभाले रखता हूँ।

डॉ आनंद दाधीच 'दधीचि' 🇮🇳

©Anand Dadhich

छोटे से मकान में रहता हूँ, जिंदगी मर्जी से जीता हूँ, भरकर आँखों में मोहब्बत, चेहरा नूरानी रखता हूँ। ख़्वाब नये मैं बुनता हूँ, पहले सुकून चुनता हूँ, भरकर दिल में इबादत, इश्क भरा दिल रखता हूँ। थोड़ा तेज मैं चलता हूँ, सबकी चाल समझता हूँ, रखकर रूहानी आदत, आदतें खास रखता हूँ। सुलझा सुलझा दिखता हूँ, किस्से प्यार के लिखता हूँ, रखकर तुम्हारी चाहत, जज्बात संभाले रखता हूँ। डॉ आनंद दाधीच 'दधीचि' 🇮🇳 ©Anand Dadhich

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