Anand Dadhich

Anand Dadhich Lives in Bengaluru, Karnataka, India

Author of 1. 'मंजूषा', 2. 'हरिवंश के आनंद' Creator of community web portal for Dadhich namely www.karnatakadadhich-parishad.webs.com Founder of All India Dadhich Tax Helpline (2011) Member of 'GRAOWA' apartment society Blogger views-ananddadhich.blogspot.com AnandDadhich.Blogspot.Com Poetanand-dadhich.blogspot.com

  • Latest
  • Popular
  • Video

White इन गलियों में कितनी बार आया हूँ, सफर को कितनी बार दोहराया हूँ, किंतु जानी पहचानी इन गलियों में- बेचैन होकर आज घबराया हूँ ! अब अंतहीन अँधियारा है गगन में, पेड़ मर चुके है धुओं की तपन में, किसने मनमानी की इन गलियों में- उठते विचारों से सकपकाया हूँ, बेचैन होकर आज घबराया हूँ ! नालियों में बजरी बदबू दबी है, कटे पशुओं की थोक बिक्री लगी है, जाहिलों से लबालब इन गलियों में- मन ही मन में बेबस सकुचाया हूँ, बेचैन होकर आज घबराया हूँ ! नशे नशेड़ियों की ही दुकानें है, बस्तियों में प्रचंड मयखाने है, बेहोश मानवों की इन गलियों में- तड़पते तन देख मैं छटपटाया हूँ, बेचैन होकर आज घबराया हूँ ! डॉ आनंद दाधीच 'दधीचि' 🇮🇳 ©Anand Dadhich

#poetananddadhich #kaviananddadhich #कविता #Sad_shayri #Pollution  White इन गलियों में कितनी बार आया हूँ,
सफर को कितनी बार दोहराया हूँ,
किंतु जानी पहचानी इन गलियों में-
बेचैन होकर आज घबराया हूँ !

अब अंतहीन अँधियारा है गगन में,
पेड़ मर चुके है धुओं की तपन में,
किसने मनमानी की इन गलियों में-
उठते विचारों से सकपकाया हूँ,
बेचैन होकर आज घबराया हूँ !

नालियों में बजरी बदबू दबी है,
कटे पशुओं की थोक बिक्री लगी है,
जाहिलों से लबालब इन गलियों में-
मन ही मन में बेबस सकुचाया हूँ,
बेचैन होकर आज घबराया हूँ !

नशे नशेड़ियों की ही दुकानें है,
बस्तियों में प्रचंड मयखाने है,
बेहोश  मानवों की इन गलियों में-
तड़पते तन देख मैं छटपटाया हूँ,
बेचैन होकर आज घबराया हूँ !

डॉ आनंद दाधीच 'दधीचि' 🇮🇳

©Anand Dadhich

voters day quotes in hindi आशाएँ धसती गई राजनीति में कौन ग़ैर? चुनावों में किससे बैर? मतों में उलझे उन्नतियों के पथ, बस; सभाएँ सजती गई, आशाएँ धसती गई! कौन किस धड़े में अड़ा? कौन किस जत्थे से जुड़ा? मतों में नीरस हुए शब्दों के अर्थ, बस; भावनाएँ मिटती गई, आशाएँ धसती गई! चले सत्ता लोभियों के द्वंद, ठस नेताओं के अफडंड, मतों में फसे धर्म-कर्म के रथ, बस; गरिमाएँ लुटती गई, आशाएँ धसती गई! डॉ आनंद दाधीच 'दधीचि' 🇮🇳 ©Anand Dadhich

#poetananddadhich #kaviananddadhich #कविता #hindipoetry #Politics  voters day quotes in hindi आशाएँ धसती गई

राजनीति में कौन ग़ैर?
चुनावों में किससे बैर?
मतों में उलझे उन्नतियों के पथ, बस;
सभाएँ सजती गई,
आशाएँ धसती गई!

कौन किस धड़े में अड़ा?
कौन किस जत्थे से जुड़ा?
मतों में नीरस हुए शब्दों के अर्थ, बस;
भावनाएँ मिटती गई,
आशाएँ धसती गई!

चले सत्ता लोभियों के द्वंद,
ठस नेताओं के अफडंड,
मतों में फसे धर्म-कर्म के रथ, बस;
गरिमाएँ  लुटती गई,
आशाएँ धसती गई!

डॉ आनंद दाधीच 'दधीचि' 🇮🇳

©Anand Dadhich

एक सामयिक कविता - लंबे हम हो रहे है काली सूखी राहों पर, खंबे हम बो रहे है, अज्ञ विकास की राहों पर, लंबे हम हो रहे है। विलीन सी धाराओं पर, मैल हम धो रहे है, उदास जलमलाओं पर, लंबे हम हो रहे है। खुरदरे खड़े टीलों पर, शजर हम खो रहे है बनवा कोठे पर्वतों पर, लंबे हम हो रहे है। इन नशीली हवाओं पर, बाज़ सब रो रहे है, गिद्धों से हालातों पर, लंबे हम हो रहे है। डॉ आनंद दाधीच 'दधीचि' 🇮🇳 ©Anand Dadhich

#kaviananddadhich #poetananddadhich #कविता #PoemonPollution #POLLUTED_DELHI #hindipoetry  एक सामयिक कविता - लंबे हम हो रहे है

काली सूखी राहों पर,
खंबे हम बो रहे है,
अज्ञ विकास की राहों पर,
लंबे हम हो रहे है।

विलीन सी धाराओं पर,
मैल हम धो रहे है,
उदास जलमलाओं पर,
लंबे हम हो रहे है।

खुरदरे खड़े टीलों पर,
शजर हम खो रहे है
बनवा कोठे पर्वतों पर,
लंबे हम हो रहे है।

इन नशीली हवाओं पर,
बाज़ सब रो रहे है,
गिद्धों से हालातों पर,
लंबे हम हो रहे है।

डॉ आनंद दाधीच 'दधीचि' 🇮🇳

©Anand Dadhich

छोटे से मकान में रहता हूँ, जिंदगी मर्जी से जीता हूँ, भरकर आँखों में मोहब्बत, चेहरा नूरानी रखता हूँ। ख़्वाब नये मैं बुनता हूँ, पहले सुकून चुनता हूँ, भरकर दिल में इबादत, इश्क भरा दिल रखता हूँ। थोड़ा तेज मैं चलता हूँ, सबकी चाल समझता हूँ, रखकर रूहानी आदत, आदतें खास रखता हूँ। सुलझा सुलझा दिखता हूँ, किस्से प्यार के लिखता हूँ, रखकर तुम्हारी चाहत, जज्बात संभाले रखता हूँ। डॉ आनंद दाधीच 'दधीचि' 🇮🇳 ©Anand Dadhich

#kaviananddadhich #poetananddadhich #कविता #weekendvibes #Family  छोटे से मकान में रहता हूँ,
जिंदगी मर्जी से जीता हूँ,
भरकर आँखों में मोहब्बत,
चेहरा नूरानी रखता हूँ।

ख़्वाब नये मैं बुनता हूँ,
पहले सुकून चुनता हूँ,
भरकर दिल में इबादत,
इश्क भरा दिल रखता हूँ।

थोड़ा तेज मैं चलता हूँ,
सबकी चाल समझता हूँ,
रखकर रूहानी आदत,
आदतें खास रखता हूँ।

सुलझा सुलझा दिखता हूँ,
किस्से प्यार के लिखता हूँ,
रखकर तुम्हारी चाहत,
जज्बात संभाले रखता हूँ।

डॉ आनंद दाधीच 'दधीचि' 🇮🇳

©Anand Dadhich

चुनाव -एक व्यंग्य चुनाव होते है, नेतागिरी के पाँव होते है, बयानों के ताव होते है, जीत हार के भाव होते है, नेताओं के ढुकाव होते है, चमचों के लगाव होते है! फिर- वही घोड़े, वही मैदान होते है, वही शहर, वही गाँव होते है, वही नेता, वही स्वाभाव होते है, वही मांगे, वही सुझाव होते है, वही बातें, वही घुमाव होते है ! फिर- अमीर, गरीबों के तनाव होते है, भेद भाव के रिसाव होते है, ताजा घपलों के घाव होते है, नेताओं के नये दांव होते है ! और फिर- चुनाव होते है ! डॉ आनंद दाधीच 'दधीचि' ©Anand Dadhich

#kaviananddadhich #poetananddadhich #कविता #चुनाव #PoemOnElections #Loksabha2024  चुनाव -एक व्यंग्य

चुनाव होते है,
नेतागिरी के पाँव होते है,
बयानों के ताव होते है,
जीत हार के भाव होते है,
नेताओं के ढुकाव होते है,
चमचों के लगाव होते है!

फिर-
वही घोड़े, वही मैदान होते है,
वही शहर, वही गाँव होते है,
वही नेता, वही स्वाभाव होते है,
वही मांगे, वही सुझाव होते है,
वही बातें, वही घुमाव होते है !

फिर-
अमीर, गरीबों के तनाव होते है,
भेद भाव के रिसाव होते है,
ताजा घपलों के घाव होते है,
नेताओं के नये दांव होते है !
और फिर-
चुनाव होते है !

डॉ आनंद दाधीच 'दधीचि'

©Anand Dadhich

एक सरोवर..एक शाम.. नील अम्बर को अपने में समाकर, पीयूष नीर से तर है सरोवर! डूब रहा है अस्त होता भास्कर; अपनी लाली किरणों को न्यून कर! करे स्तुति तरु की डालियाँ झुककर, कर रहे पक्षी गान चहक चहक कर, प्रसून की पंक्ति खड़ी है तट पर; रिपु से कर रही समर डट कर! गिरी बिम्ब भी हिलोर रहा मचलकर! नील अम्बर को अपने में समाकर, पीयूष नीर से तर है सरोवर! डूब गया ज्योस्तना भूप भास्कर, डूबे मयंक उडु रात्रि नृप बनकर, *सर जगा रहा निशा को कलकल कर, चले मधुर पवन सरोवर जल छूकर! मुसाफिर श्रांत सुस्त आया तट पर, तन्द्रा गया, देख मनोहर सरोवर, हर्षित वसुंधरा भी सोई बेफिकर! डॉ आनंद दाधीच 'दधीचि' (*सर - तालाब) ©Anand Dadhich

#poetananddadhich #kaviananddadhich #कविता #poetsofindia #PoemOnLake  एक सरोवर..एक शाम.. 

नील अम्बर को अपने में समाकर,
पीयूष नीर से तर है सरोवर!
डूब रहा है अस्त होता भास्कर;
अपनी लाली किरणों को न्यून कर!
करे स्तुति तरु की डालियाँ झुककर,
कर रहे पक्षी गान चहक चहक कर,
प्रसून की पंक्ति खड़ी है तट पर;
रिपु से कर रही समर डट कर!
गिरी बिम्ब भी हिलोर रहा मचलकर!

नील अम्बर को अपने में समाकर,
पीयूष नीर से तर है सरोवर!
डूब गया ज्योस्तना भूप भास्कर,
डूबे मयंक उडु रात्रि नृप बनकर,
*सर जगा रहा निशा को कलकल कर,
चले मधुर पवन सरोवर जल छूकर!
मुसाफिर श्रांत सुस्त आया तट पर,
तन्द्रा गया, देख मनोहर सरोवर,
हर्षित वसुंधरा भी सोई बेफिकर!

डॉ आनंद दाधीच 'दधीचि'
(*सर - तालाब)

©Anand Dadhich
Trending Topic