एक सरोवर..एक शाम.. नील अम्बर को अपने में समाकर, | हिंदी कविता

"एक सरोवर..एक शाम.. नील अम्बर को अपने में समाकर, पीयूष नीर से तर है सरोवर! डूब रहा है अस्त होता भास्कर; अपनी लाली किरणों को न्यून कर! करे स्तुति तरु की डालियाँ झुककर, कर रहे पक्षी गान चहक चहक कर, प्रसून की पंक्ति खड़ी है तट पर; रिपु से कर रही समर डट कर! गिरी बिम्ब भी हिलोर रहा मचलकर! नील अम्बर को अपने में समाकर, पीयूष नीर से तर है सरोवर! डूब गया ज्योस्तना भूप भास्कर, डूबे मयंक उडु रात्रि नृप बनकर, *सर जगा रहा निशा को कलकल कर, चले मधुर पवन सरोवर जल छूकर! मुसाफिर श्रांत सुस्त आया तट पर, तन्द्रा गया, देख मनोहर सरोवर, हर्षित वसुंधरा भी सोई बेफिकर! डॉ आनंद दाधीच 'दधीचि' (*सर - तालाब) ©Anand Dadhich"

 एक सरोवर..एक शाम.. 

नील अम्बर को अपने में समाकर,
पीयूष नीर से तर है सरोवर!
डूब रहा है अस्त होता भास्कर;
अपनी लाली किरणों को न्यून कर!
करे स्तुति तरु की डालियाँ झुककर,
कर रहे पक्षी गान चहक चहक कर,
प्रसून की पंक्ति खड़ी है तट पर;
रिपु से कर रही समर डट कर!
गिरी बिम्ब भी हिलोर रहा मचलकर!

नील अम्बर को अपने में समाकर,
पीयूष नीर से तर है सरोवर!
डूब गया ज्योस्तना भूप भास्कर,
डूबे मयंक उडु रात्रि नृप बनकर,
*सर जगा रहा निशा को कलकल कर,
चले मधुर पवन सरोवर जल छूकर!
मुसाफिर श्रांत सुस्त आया तट पर,
तन्द्रा गया, देख मनोहर सरोवर,
हर्षित वसुंधरा भी सोई बेफिकर!

डॉ आनंद दाधीच 'दधीचि'
(*सर - तालाब)

©Anand Dadhich

एक सरोवर..एक शाम.. नील अम्बर को अपने में समाकर, पीयूष नीर से तर है सरोवर! डूब रहा है अस्त होता भास्कर; अपनी लाली किरणों को न्यून कर! करे स्तुति तरु की डालियाँ झुककर, कर रहे पक्षी गान चहक चहक कर, प्रसून की पंक्ति खड़ी है तट पर; रिपु से कर रही समर डट कर! गिरी बिम्ब भी हिलोर रहा मचलकर! नील अम्बर को अपने में समाकर, पीयूष नीर से तर है सरोवर! डूब गया ज्योस्तना भूप भास्कर, डूबे मयंक उडु रात्रि नृप बनकर, *सर जगा रहा निशा को कलकल कर, चले मधुर पवन सरोवर जल छूकर! मुसाफिर श्रांत सुस्त आया तट पर, तन्द्रा गया, देख मनोहर सरोवर, हर्षित वसुंधरा भी सोई बेफिकर! डॉ आनंद दाधीच 'दधीचि' (*सर - तालाब) ©Anand Dadhich

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