हो रहा ये क्या जो जिसकी नहीं है सुध सूझती, देखकर ज

"हो रहा ये क्या जो जिसकी नहीं है सुध सूझती, देखकर जिसको न मैं आंख अपनी मूंदती, क्या जो हो रहा वो अनृत है, या सब मानव ही मृत है। यूं सम्मुख सब देखकर हम बड़े व्यथित हैं, जो हो रहा कहीं वो भी तो कथित है। फिर लज्जा क्यों न आती इन समस्त मनुज को, छोड़ कर क्या जाएंगे हम समस्त अनुज को? ©preeti shukla"

 हो रहा ये क्या जो जिसकी नहीं है सुध सूझती,
देखकर जिसको न  मैं आंख अपनी मूंदती,
क्या जो हो रहा वो अनृत है,
या सब मानव ही मृत है।
यूं सम्मुख सब देखकर हम बड़े व्यथित हैं,
जो हो रहा कहीं वो भी तो कथित है।
फिर लज्जा क्यों न आती इन समस्त मनुज को,
छोड़ कर क्या जाएंगे हम समस्त अनुज को?

©preeti shukla

हो रहा ये क्या जो जिसकी नहीं है सुध सूझती, देखकर जिसको न मैं आंख अपनी मूंदती, क्या जो हो रहा वो अनृत है, या सब मानव ही मृत है। यूं सम्मुख सब देखकर हम बड़े व्यथित हैं, जो हो रहा कहीं वो भी तो कथित है। फिर लज्जा क्यों न आती इन समस्त मनुज को, छोड़ कर क्या जाएंगे हम समस्त अनुज को? ©preeti shukla

हो रहा ये क्या जो जिसकी नहीं है सुध सूझती,
देखकर जिसको न मैं आंख अपनी मूंदती,
क्या जो हो रहा वो अनृत है,
या सब मानव ही मृत है।
यूं सम्मुख सब देखकर हम बड़े व्यथित हैं,
जो हो रहा कहीं वो भी तो कथित है।
फिर लज्जा क्यों न आती इन समस्त मनुज को,
छोड़ कर क्या जाएंगे हम समस्त अनुज को?

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