तमाम तजूर्ब से हम को चलो इतना तो पता लगा ,
जिसे अपना समझ बैठे वही अपना नहीं लगा ।
यूं न रोए हम कभी गैरों की भीड़ में ,
और जो कभी अपना समझ के रोए किसी कंधे पे सर रख के हम ,
मानों वो कंधा अपना नहीं लगा ।
मुहब्बत में हारे थे बेशक हम किसी एक शक्स से ,
पर सच तो है की दोस्तों में भी कोई अपना नहीं लगा ।
मलाल है मुझे साहिब तुझे सच्चा समझने का ।
तेरा फरेब भी मुझे कभी झूठा नहीं लगा ।
सोच कर खुद पे हस पड़ा है मयंक आज
अच्छा हुआ खुदा की कोई अब अपना नहीं लगा ।
तमाम तजूर्ब से हम को चलो इतना तो पता लगा ,
जिसे अपना समझ बैठे वही अपना नहीं लगा ।
दिल की बात
©Mayank Pandey
#patience