तमाम तजूर्ब से हम को चलो इतना तो पता लगा , जिसे अ | हिंदी शायरी

"तमाम तजूर्ब से हम को चलो इतना तो पता लगा , जिसे अपना समझ बैठे वही अपना नहीं लगा । यूं न रोए हम कभी गैरों की भीड़ में , और जो कभी अपना समझ के रोए किसी कंधे पे सर रख के हम , मानों वो कंधा अपना नहीं लगा । मुहब्बत में हारे थे बेशक हम किसी एक शक्स से , पर सच तो है की दोस्तों में भी कोई अपना नहीं लगा । मलाल है मुझे साहिब तुझे सच्चा समझने का । तेरा फरेब भी मुझे कभी झूठा नहीं लगा । सोच कर खुद पे हस पड़ा है मयंक आज अच्छा हुआ खुदा की कोई अब अपना नहीं लगा । तमाम तजूर्ब से हम को चलो इतना तो पता लगा , जिसे अपना समझ बैठे वही अपना नहीं लगा । दिल की बात ©Mayank Pandey"

 तमाम तजूर्ब से हम को चलो इतना तो पता लगा , 
जिसे अपना समझ बैठे वही अपना नहीं लगा ।
यूं न रोए हम कभी गैरों की भीड़ में ,
 और जो कभी अपना समझ के रोए किसी कंधे पे सर रख के हम ,
 मानों वो कंधा अपना नहीं लगा ।
मुहब्बत में हारे थे बेशक हम किसी एक शक्स से ,
पर सच तो है की दोस्तों में भी कोई अपना नहीं लगा ।
मलाल है मुझे साहिब तुझे सच्चा समझने का ।
 तेरा फरेब भी मुझे कभी झूठा नहीं लगा । 
 सोच कर खुद पे हस पड़ा है मयंक आज
अच्छा हुआ खुदा की कोई अब अपना नहीं लगा ।
तमाम तजूर्ब से हम को चलो इतना तो पता लगा ,
जिसे अपना समझ बैठे वही अपना नहीं लगा ।

दिल की बात

©Mayank Pandey

तमाम तजूर्ब से हम को चलो इतना तो पता लगा , जिसे अपना समझ बैठे वही अपना नहीं लगा । यूं न रोए हम कभी गैरों की भीड़ में , और जो कभी अपना समझ के रोए किसी कंधे पे सर रख के हम , मानों वो कंधा अपना नहीं लगा । मुहब्बत में हारे थे बेशक हम किसी एक शक्स से , पर सच तो है की दोस्तों में भी कोई अपना नहीं लगा । मलाल है मुझे साहिब तुझे सच्चा समझने का । तेरा फरेब भी मुझे कभी झूठा नहीं लगा । सोच कर खुद पे हस पड़ा है मयंक आज अच्छा हुआ खुदा की कोई अब अपना नहीं लगा । तमाम तजूर्ब से हम को चलो इतना तो पता लगा , जिसे अपना समझ बैठे वही अपना नहीं लगा । दिल की बात ©Mayank Pandey

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