हम अपने छोटे से जीवन काल में बहूत से लोगों से मिलते है ।
उनके साथ उठना बैठना बात करना हमें प्रभावित करता है ।
और इसी प्रभाव में हम उनसे मित्रता करते है ।
पर क्या हर अच्छा दिखने व बोलने वाला हमारा सच्चा मित्र हो सकता है?
मित्रा एक दो अक्षरों का ऐसा समून है, जो इस दुनियां में हर बुरे से बुरे वक़्त
में आप के साथ कदम से कदम मिला कर मजबूती से खड़ी रहती है ।
जिस के अकेले मात्र से हर समस्या बोहत छोटी दिखाई देती है ,
और आप को उन सब से लडने की प्रेरणा देता है ।
मित्र वह जो आप को छलता नहीं ,ना आप से किसी स्वार्थ से जुड़ता है।
मित्र आप की अनकही किताब का वह ताला होता है,
जो आप किसी से सांझा न कर सकते ।
मित्र आप के स्वाभिमान के लिए किसी से भी लड़ सकता है ,
उच्च नीच जात पात रंग भेद इन सबसे
परे हो कर आप से हृदय के अंतर मन से जुड़ता है ।
जिसे कभी मित्र होने का मोल ना चुकाना पड़े ,
या किसी प्रमाण की आवश्यकता ना देनी पड़े ।
जो केवल आप की उपलब्धि में ही खुद को गौरवान्वित ना समझे ,
बल्कि आप के दुख खुद को स्वयं का दुख समझे वही सच्चा मित्र है।
ऐसे मित्र बोहत भाग्य से प्राप्त होते है ,
और उन भाग्यशाली लोगों में से एक हम भी है ।
मित्र वही है जो मित्र को मृत्यु के अंतिम समय तक साथ ना छोड़े ।
मेरे सारे सच्चे मित्रों के लिए मेरे ह्रदय से प्रणाम ।
Dil ki baat. -
©Mayank Pandey
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