बहुत अच्छे से तैर लेते हो दोस्त तूफानों में भी, सच | हिंदी कविता

"बहुत अच्छे से तैर लेते हो दोस्त तूफानों में भी, सच बताओ कश्ती के डूबाए हुए हो क्या? इतने अच्छे से संभाल लेते हो तुम दूसरों को, क्या तुम भी किस्मत के गिराए हुए हो क्या? मरहम लगा देते हो जब भी देखते हो जख्मी किसी को, तुम भी जमाने में चोट खाए हुए हो क्या? कितने अच्छे से समझ लेते हो बातों को तुम, क्या तुम भी कभी दबाए हुए हो क्या? यूं खेल लेते हो तुम मुश्किलों के साथ हंसते हंसते, तुम भी कभी परिस्थितियों के रुलाए हुए हो क्या? फर्क नहीं पड़ता जो अब तुम्हें सूरज के ताप से, आग में तुम जलाए हुए हो क्या? कितने मजबूत हो तुम टूटते ही नहीं हीरे की चोट से भी, पत्थरों की दुनिया के ठुकराए हुए हो क्या? कैसे जान लेते हो किस रुख में बहेंगी हवाएं यहां, तुम सच कहो इन तुफानों में डगमगाए हुए हो क्या? कितनी खुबसूरती से धिक्कार देते हो हार के अस्तित्व को, तुम भी कहीं सच में सताए हुए हो क्या? ©Consciously Unconscious"

 बहुत अच्छे से तैर लेते हो दोस्त तूफानों में भी,
सच बताओ कश्ती के डूबाए हुए हो क्या?

इतने अच्छे से संभाल लेते हो तुम दूसरों को,
क्या तुम भी किस्मत के गिराए हुए हो क्या?

मरहम लगा देते हो जब भी देखते हो जख्मी किसी को,
तुम भी जमाने में चोट खाए हुए हो क्या?

कितने अच्छे से समझ लेते हो बातों को तुम,
क्या तुम भी कभी दबाए हुए हो क्या?

यूं खेल लेते हो तुम मुश्किलों के साथ हंसते हंसते,
तुम भी कभी परिस्थितियों के रुलाए हुए हो क्या?

फर्क नहीं पड़ता जो अब तुम्हें सूरज के ताप से,
आग में तुम जलाए हुए हो क्या?

कितने मजबूत हो तुम टूटते ही नहीं हीरे की चोट से भी,
पत्थरों की दुनिया के ठुकराए हुए हो क्या?

कैसे जान लेते हो किस रुख में बहेंगी हवाएं यहां,
तुम सच कहो इन तुफानों में डगमगाए हुए हो क्या?

कितनी खुबसूरती से  धिक्कार देते हो हार के अस्तित्व को,
तुम भी कहीं सच में सताए हुए हो क्या?

©Consciously Unconscious

बहुत अच्छे से तैर लेते हो दोस्त तूफानों में भी, सच बताओ कश्ती के डूबाए हुए हो क्या? इतने अच्छे से संभाल लेते हो तुम दूसरों को, क्या तुम भी किस्मत के गिराए हुए हो क्या? मरहम लगा देते हो जब भी देखते हो जख्मी किसी को, तुम भी जमाने में चोट खाए हुए हो क्या? कितने अच्छे से समझ लेते हो बातों को तुम, क्या तुम भी कभी दबाए हुए हो क्या? यूं खेल लेते हो तुम मुश्किलों के साथ हंसते हंसते, तुम भी कभी परिस्थितियों के रुलाए हुए हो क्या? फर्क नहीं पड़ता जो अब तुम्हें सूरज के ताप से, आग में तुम जलाए हुए हो क्या? कितने मजबूत हो तुम टूटते ही नहीं हीरे की चोट से भी, पत्थरों की दुनिया के ठुकराए हुए हो क्या? कैसे जान लेते हो किस रुख में बहेंगी हवाएं यहां, तुम सच कहो इन तुफानों में डगमगाए हुए हो क्या? कितनी खुबसूरती से धिक्कार देते हो हार के अस्तित्व को, तुम भी कहीं सच में सताए हुए हो क्या? ©Consciously Unconscious

#darkness

बस अब २ से एग्जाम हैं
10 को हम वापस यहां

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