है मुश्किल मगर,घर छोड़ के जाना पड़ेगा जिंदगी जीने के | हिंदी शायरी

"है मुश्किल मगर,घर छोड़ के जाना पड़ेगा जिंदगी जीने के लिए,कमाना पड़ेगा रहेंगे कब तक आखिर,आगोश-ए-सियाही में चारग-ए-आरजू फिर, दिल में जलाना पड़ेगा दर्द-ए-दिल,न हो जाए, जाहिर जमाने पर पीछे पलकों के,आँसुओं को,छुपाना पड़ेगा चाहें या ना चाहें हम,मगर फिर भी ऐ दिल हर एक दस्तूर,जमाने का, निभाना पड़ेगा बिना जिसके,है मुश्किल,पल भर भी जीना हो कर जुदा उससे,जीवन बिताना पड़ेगा होगा देना हौसला,खुद ही खुद को ऐ "अश्क़" ख्वाब-ए-मसर्रत,जेहन में सजाना पड़ेगा अरविन्द "अश्क़" ©Arvind Rao"

 है मुश्किल मगर,घर छोड़ के जाना पड़ेगा
जिंदगी जीने के लिए,कमाना पड़ेगा

रहेंगे कब तक आखिर,आगोश-ए-सियाही में
चारग-ए-आरजू फिर, दिल में जलाना पड़ेगा

दर्द-ए-दिल,न हो जाए, जाहिर जमाने पर
पीछे पलकों के,आँसुओं को,छुपाना पड़ेगा

चाहें या ना चाहें हम,मगर फिर भी ऐ दिल
हर एक दस्तूर,जमाने का, निभाना पड़ेगा

बिना जिसके,है मुश्किल,पल भर भी जीना
हो कर जुदा उससे,जीवन बिताना पड़ेगा

होगा देना हौसला,खुद ही खुद को ऐ "अश्क़"
ख्वाब-ए-मसर्रत,जेहन में सजाना पड़ेगा

अरविन्द "अश्क़"

©Arvind Rao

है मुश्किल मगर,घर छोड़ के जाना पड़ेगा जिंदगी जीने के लिए,कमाना पड़ेगा रहेंगे कब तक आखिर,आगोश-ए-सियाही में चारग-ए-आरजू फिर, दिल में जलाना पड़ेगा दर्द-ए-दिल,न हो जाए, जाहिर जमाने पर पीछे पलकों के,आँसुओं को,छुपाना पड़ेगा चाहें या ना चाहें हम,मगर फिर भी ऐ दिल हर एक दस्तूर,जमाने का, निभाना पड़ेगा बिना जिसके,है मुश्किल,पल भर भी जीना हो कर जुदा उससे,जीवन बिताना पड़ेगा होगा देना हौसला,खुद ही खुद को ऐ "अश्क़" ख्वाब-ए-मसर्रत,जेहन में सजाना पड़ेगा अरविन्द "अश्क़" ©Arvind Rao

#मजबूरी

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