Arvind Rao

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फ़खत जायज है जो,मैं वही बात कहता हूँ मैं गजल नहीं कहता,मेरे जज्बात कहता हूँ

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White तपती धूप में साया-ए-दरख़्त होते हैं वालिद बचाने वाले हर बला से फक्त होते हैं वालिद है मुमकिन छोड़ दे हाथ,कभी खुदा भी ऐ यार साथ औलाद के मगर,हर वक्त होते हैं वालिद होते हैं ये,कातिब-ए-किताब-ए-जीस्त गोया परवरदिगार का ही,एक लख़्त होते हैं वालिद नही गुंजाइश जरा भी, ना मानने की ये बात खुदा नहीं,मुसव्विर -ए- बख़्त होते हैं वालिद बर्दास्त होता नही,दर्द जरा सा भी,औलाद का कौन कहता है यारों,के सख़्त होते हैं वालिद तमाम उम्र गुजरती है,सहारे जिसके सुकून से यकीनन ऐ "अश्क",वो रख़्त होते हैं वालिद अरविन्द "अश्क" ©Arvind Rao

#शायरी #fathers_day  White तपती धूप में साया-ए-दरख़्त होते हैं वालिद
बचाने वाले हर  बला से फक्त होते हैं वालिद

है मुमकिन छोड़ दे हाथ,कभी खुदा भी ऐ यार
साथ औलाद के  मगर,हर वक्त होते हैं वालिद

होते  हैं  ये,कातिब-ए-किताब-ए-जीस्त गोया
परवरदिगार का ही,एक लख़्त होते हैं वालिद

नही गुंजाइश  जरा भी, ना मानने  की ये बात
खुदा नहीं,मुसव्विर -ए- बख़्त होते हैं वालिद

बर्दास्त होता नही,दर्द जरा सा भी,औलाद का 
कौन कहता है  यारों,के सख़्त होते हैं वालिद

तमाम उम्र गुजरती है,सहारे जिसके सुकून से
यकीनन  ऐ "अश्क",वो  रख़्त होते हैं वालिद

अरविन्द "अश्क"

©Arvind Rao

#fathers_day

8 Love

हिज्र में तुम्हारे मुझे मुस्कुराना अच्छा नहीं लगता यूं झूँठे अच्छा हाल बतलाना अच्छा नहीं लगता सियाही -ए- फुरकत छाई जहन में इस कदर मेरे के जुगनु का भी जगमगाना अच्छा नहीं लगता हसरत -ए- दीदार -ए- सनम में मुद्दतों से ऐ यार आंखों का मेरी यों तड़पड़ाना अच्छा नहीं लगता आ जाओगे लौट कर जल्दी फिर तुम घर अपने दिल को लेकिन यूं बरगलाना अच्छा नहीं लगता पालना उम्मीद दिल में पहले तुमसे मिलने की अपने आप को फिर समझाना अच्छा नहीं लगता करे क्या ये "अश्क" बता, सफ़र-ए- तन्हा शब में तुम बिन गजल भी गुनगुनाना अच्छा नहीं लगता अरविन्द "अश्क" ©Arvind Rao

#शायरी #तुम  हिज्र में तुम्हारे मुझे मुस्कुराना अच्छा नहीं लगता
यूं झूँठे अच्छा हाल बतलाना अच्छा नहीं लगता 

सियाही -ए- फुरकत छाई जहन में इस कदर मेरे
के जुगनु  का भी  जगमगाना अच्छा नहीं लगता

हसरत -ए- दीदार -ए- सनम में मुद्दतों से ऐ यार
आंखों का मेरी यों तड़पड़ाना अच्छा नहीं लगता

आ जाओगे लौट कर जल्दी फिर तुम घर अपने
दिल को लेकिन यूं बरगलाना अच्छा नहीं लगता

पालना  उम्मीद  दिल में  पहले  तुमसे  मिलने की
अपने आप को फिर समझाना अच्छा नहीं लगता 

करे क्या ये "अश्क" बता, सफ़र-ए- तन्हा शब में
तुम बिन गजल भी गुनगुनाना अच्छा नहीं लगता

अरविन्द "अश्क"

©Arvind Rao

#तुम बिन

6 Love

है मुश्किल मगर,घर छोड़ के जाना पड़ेगा जिंदगी जीने के लिए,कमाना पड़ेगा रहेंगे कब तक आखिर,आगोश-ए-सियाही में चारग-ए-आरजू फिर, दिल में जलाना पड़ेगा दर्द-ए-दिल,न हो जाए, जाहिर जमाने पर पीछे पलकों के,आँसुओं को,छुपाना पड़ेगा चाहें या ना चाहें हम,मगर फिर भी ऐ दिल हर एक दस्तूर,जमाने का, निभाना पड़ेगा बिना जिसके,है मुश्किल,पल भर भी जीना हो कर जुदा उससे,जीवन बिताना पड़ेगा होगा देना हौसला,खुद ही खुद को ऐ "अश्क़" ख्वाब-ए-मसर्रत,जेहन में सजाना पड़ेगा अरविन्द "अश्क़" ©Arvind Rao

#मजबूरी #शायरी  है मुश्किल मगर,घर छोड़ के जाना पड़ेगा
जिंदगी जीने के लिए,कमाना पड़ेगा

रहेंगे कब तक आखिर,आगोश-ए-सियाही में
चारग-ए-आरजू फिर, दिल में जलाना पड़ेगा

दर्द-ए-दिल,न हो जाए, जाहिर जमाने पर
पीछे पलकों के,आँसुओं को,छुपाना पड़ेगा

चाहें या ना चाहें हम,मगर फिर भी ऐ दिल
हर एक दस्तूर,जमाने का, निभाना पड़ेगा

बिना जिसके,है मुश्किल,पल भर भी जीना
हो कर जुदा उससे,जीवन बिताना पड़ेगा

होगा देना हौसला,खुद ही खुद को ऐ "अश्क़"
ख्वाब-ए-मसर्रत,जेहन में सजाना पड़ेगा

अरविन्द "अश्क़"

©Arvind Rao
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