है मुश्किल मगर,घर छोड़ के जाना पड़ेगा
जिंदगी जीने के लिए,कमाना पड़ेगा
रहेंगे कब तक आखिर,आगोश-ए-सियाही में
चारग-ए-आरजू फिर, दिल में जलाना पड़ेगा
दर्द-ए-दिल,न हो जाए, जाहिर जमाने पर
पीछे पलकों के,आँसुओं को,छुपाना पड़ेगा
चाहें या ना चाहें हम,मगर फिर भी ऐ दिल
हर एक दस्तूर,जमाने का, निभाना पड़ेगा
बिना जिसके,है मुश्किल,पल भर भी जीना
हो कर जुदा उससे,जीवन बिताना पड़ेगा
होगा देना हौसला,खुद ही खुद को ऐ "अश्क़"
ख्वाब-ए-मसर्रत,जेहन में सजाना पड़ेगा
अरविन्द "अश्क़"
©Arvind Rao
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