White तपती धूप में साया-ए-दरख़्त होते हैं वालिद बच | हिंदी शायरी

"White तपती धूप में साया-ए-दरख़्त होते हैं वालिद बचाने वाले हर बला से फक्त होते हैं वालिद है मुमकिन छोड़ दे हाथ,कभी खुदा भी ऐ यार साथ औलाद के मगर,हर वक्त होते हैं वालिद होते हैं ये,कातिब-ए-किताब-ए-जीस्त गोया परवरदिगार का ही,एक लख़्त होते हैं वालिद नही गुंजाइश जरा भी, ना मानने की ये बात खुदा नहीं,मुसव्विर -ए- बख़्त होते हैं वालिद बर्दास्त होता नही,दर्द जरा सा भी,औलाद का कौन कहता है यारों,के सख़्त होते हैं वालिद तमाम उम्र गुजरती है,सहारे जिसके सुकून से यकीनन ऐ "अश्क",वो रख़्त होते हैं वालिद अरविन्द "अश्क" ©Arvind Rao"

 White तपती धूप में साया-ए-दरख़्त होते हैं वालिद
बचाने वाले हर  बला से फक्त होते हैं वालिद

है मुमकिन छोड़ दे हाथ,कभी खुदा भी ऐ यार
साथ औलाद के  मगर,हर वक्त होते हैं वालिद

होते  हैं  ये,कातिब-ए-किताब-ए-जीस्त गोया
परवरदिगार का ही,एक लख़्त होते हैं वालिद

नही गुंजाइश  जरा भी, ना मानने  की ये बात
खुदा नहीं,मुसव्विर -ए- बख़्त होते हैं वालिद

बर्दास्त होता नही,दर्द जरा सा भी,औलाद का 
कौन कहता है  यारों,के सख़्त होते हैं वालिद

तमाम उम्र गुजरती है,सहारे जिसके सुकून से
यकीनन  ऐ "अश्क",वो  रख़्त होते हैं वालिद

अरविन्द "अश्क"

©Arvind Rao

White तपती धूप में साया-ए-दरख़्त होते हैं वालिद बचाने वाले हर बला से फक्त होते हैं वालिद है मुमकिन छोड़ दे हाथ,कभी खुदा भी ऐ यार साथ औलाद के मगर,हर वक्त होते हैं वालिद होते हैं ये,कातिब-ए-किताब-ए-जीस्त गोया परवरदिगार का ही,एक लख़्त होते हैं वालिद नही गुंजाइश जरा भी, ना मानने की ये बात खुदा नहीं,मुसव्विर -ए- बख़्त होते हैं वालिद बर्दास्त होता नही,दर्द जरा सा भी,औलाद का कौन कहता है यारों,के सख़्त होते हैं वालिद तमाम उम्र गुजरती है,सहारे जिसके सुकून से यकीनन ऐ "अश्क",वो रख़्त होते हैं वालिद अरविन्द "अश्क" ©Arvind Rao

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