White तपती धूप में साया-ए-दरख़्त होते हैं वालिद
बचाने वाले हर बला से फक्त होते हैं वालिद
है मुमकिन छोड़ दे हाथ,कभी खुदा भी ऐ यार
साथ औलाद के मगर,हर वक्त होते हैं वालिद
होते हैं ये,कातिब-ए-किताब-ए-जीस्त गोया
परवरदिगार का ही,एक लख़्त होते हैं वालिद
नही गुंजाइश जरा भी, ना मानने की ये बात
खुदा नहीं,मुसव्विर -ए- बख़्त होते हैं वालिद
बर्दास्त होता नही,दर्द जरा सा भी,औलाद का
कौन कहता है यारों,के सख़्त होते हैं वालिद
तमाम उम्र गुजरती है,सहारे जिसके सुकून से
यकीनन ऐ "अश्क",वो रख़्त होते हैं वालिद
अरविन्द "अश्क"
©Arvind Rao
#fathers_day