वही शाम थी वही वजह, वही झील थी वही जगह, था मैं अके

"वही शाम थी वही वजह, वही झील थी वही जगह, था मैं अकेला बैठा रहा, आग थी दो जो जलती रही, झील किनारे एक थी वो, और एक मेरे भीतर जलती रही"

 वही शाम थी वही वजह,
वही झील थी वही जगह,
था मैं अकेला बैठा रहा,
आग थी दो जो जलती रही,
झील किनारे एक थी वो,
और एक मेरे भीतर जलती रही

वही शाम थी वही वजह, वही झील थी वही जगह, था मैं अकेला बैठा रहा, आग थी दो जो जलती रही, झील किनारे एक थी वो, और एक मेरे भीतर जलती रही

#इंतेजार

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