धन-दौलत (दोहे)
धन-दौलत ये है बड़ी, इसका ही सम्मान।
जो इससे पीछे रहा, कम कीमत ये जान।।
मानवता बस नाम की, धन-दौलत से मान।
अहंकार में डूब कर, बनता वह अनजान।।
जूझ रहा इंसान है, धन-दौलत को आज।
इसको पाने के लिए, करता कुछ भी काज।।
धन-दौलत ही चाहिए, पाने को सम्मान।
इसके बिन कुछ है नहीं, खोते सब अरमान।।
अपराधी घूमें फिरें, करने को वह काज।
धन-दौलत को लूटते, समझें खुद सरताज।।
धन-दौलत की चाह में, भटक रहा इंसान।
उसे झपटने के लिए, भूल रहा ईमान।।
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देवेश दीक्षित
स्वरचित एवं मौलिक
©Devesh Dixit
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धन-दौलत (दोहे)
धन-दौलत ये है बड़ी, इसका ही सम्मान।
जो इससे पीछे रहा, कम कीमत ये जान।।
मानवता बस नाम की, धन-दौलत से मान।