नीतियों की बुद्धि मैने मां से सीखी, पिता से सीखी | हिंदी Motivation

"नीतियों की बुद्धि मैने मां से सीखी, पिता से सीखी जिम्मेदारी। रिश्तेदार सीखा रहे रिश्तों का होना, दुनिया को देखा तो प्रेम समझ आया। इस जीवन का डोर उस प्रभु ने है पकड़ा अहंकार क्यूं जब कुछ है ही नहीं अपना। क्या खोया क्या पाया, इस भीड़ में कैसे आया। मन से क्यूं ना पूछा,क्यों न खुद को समझाया। अलग था मैं सबसे, अलग काम मेरा मगर उलझनों में सिमटा रहा, उसको भी ना समझ पाया। क्या हो कि उम्र की, अंतिम सीमा पता हो जो चाहिए वो क्या हासिल कर लोगे या हो अगर आखिरी पल ही बस कल तो, खुद को जीयोगे याकि दुनिया जीतोगे। मन को मारकर सब मिल भी जाए तो खुद से मिलना हो कभी कैसे मिलोगे, कर्जे के जीवन में खुद का क्या बनाया, पूछ ले जो कोई तो क्या हिसाब दोगे। चार दिन के जीवन के निहित चार मूल्यों को पढ़ लो। दो में जियो जीवन को, एक में जीवन जानो, समझ लिए जो एक में जीवन, एक में जीवन सुखी समझ लो। प्रभु की माया कर्म रचित है, कर्म करो खुद को पहचानो।।। ©Vishwas Pradhan"

 नीतियों की बुद्धि मैने मां से सीखी,

पिता से सीखी जिम्मेदारी।

रिश्तेदार सीखा रहे रिश्तों का होना,

दुनिया को देखा तो प्रेम समझ आया।

इस जीवन का डोर उस प्रभु ने है पकड़ा

अहंकार क्यूं जब कुछ है ही नहीं अपना।

क्या खोया क्या पाया, इस भीड़ में कैसे आया।

मन से क्यूं ना पूछा,क्यों न खुद को समझाया।

अलग था मैं सबसे, अलग काम मेरा मगर

उलझनों में सिमटा रहा, उसको भी ना समझ पाया।

क्या हो कि उम्र की, अंतिम सीमा पता हो

जो चाहिए वो क्या हासिल कर लोगे या

हो अगर आखिरी पल ही बस कल तो,

खुद को जीयोगे याकि दुनिया जीतोगे।

मन को मारकर सब मिल भी जाए तो

खुद से मिलना हो कभी कैसे मिलोगे,

कर्जे के जीवन में खुद का क्या बनाया,

पूछ ले जो कोई तो क्या हिसाब दोगे।

चार दिन के जीवन के निहित चार मूल्यों को पढ़ लो।

दो में जियो जीवन को, एक में जीवन जानो,

समझ लिए जो एक में जीवन, एक में जीवन सुखी समझ लो।

प्रभु की माया कर्म रचित है, कर्म करो खुद को पहचानो।।।

©Vishwas Pradhan

नीतियों की बुद्धि मैने मां से सीखी, पिता से सीखी जिम्मेदारी। रिश्तेदार सीखा रहे रिश्तों का होना, दुनिया को देखा तो प्रेम समझ आया। इस जीवन का डोर उस प्रभु ने है पकड़ा अहंकार क्यूं जब कुछ है ही नहीं अपना। क्या खोया क्या पाया, इस भीड़ में कैसे आया। मन से क्यूं ना पूछा,क्यों न खुद को समझाया। अलग था मैं सबसे, अलग काम मेरा मगर उलझनों में सिमटा रहा, उसको भी ना समझ पाया। क्या हो कि उम्र की, अंतिम सीमा पता हो जो चाहिए वो क्या हासिल कर लोगे या हो अगर आखिरी पल ही बस कल तो, खुद को जीयोगे याकि दुनिया जीतोगे। मन को मारकर सब मिल भी जाए तो खुद से मिलना हो कभी कैसे मिलोगे, कर्जे के जीवन में खुद का क्या बनाया, पूछ ले जो कोई तो क्या हिसाब दोगे। चार दिन के जीवन के निहित चार मूल्यों को पढ़ लो। दो में जियो जीवन को, एक में जीवन जानो, समझ लिए जो एक में जीवन, एक में जीवन सुखी समझ लो। प्रभु की माया कर्म रचित है, कर्म करो खुद को पहचानो।।। ©Vishwas Pradhan

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