आँखों ने प्रेम की भाषा पढ़ी
और बंध गईं
उस एक अनजान से
जिसे देखने भर से
उनका होना सार्थक हुआ
आँखों ने
घृणा की भाषा पढ़ी
और कोरों से फिसल गई
वितृष्णा की कहानी
आँखों ने सुख की भाषा पढ़ी
और चमकने लगीं
माघ की धूप सी
आँखों ने ईर्ष्या,द्वेष और दुःख की भाषा पढ़ी
और डूब गईं उदासी की साँझ में
रात के चौथे पहर तक
आँखों ने धैर्य की भाषा पढ़ी
और स्थिर हो गईं
समुद्र सी
अथाह
अनन्त....
डॉ. प्रतिभा सिंह
©Dr.Pratibha Singh
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