मन्दिर की सीढ़ियों पर बैठेते हुए
उसने मेरी हथेली को अपने हाथ में लेकर कहा
तुम बिल्कुल फूल जैसी हो
सुंदर,सुकोमल और सुगंध से भरी हुई
तुम्हें देखने भर से आँखे तृप्त हो जाती हैं
तुम्हें स्पर्श करते हुए मैं सम्भलता हूँ
ठीक वैसे ही जैसे फूलों को
तुम्हारी महक मेरी सांसों में
चम्पा की सुंगन्ध सी घुलती है।
और मैं....
बदहवास
मन्दिर की सीढ़ियों पर बिखरे फूलों को देख रही थी
जो आते- जाते पैरों से कुचले जा रहे थे
बेपरवाह
आस-पास गुड़हल,कनेर और गुलाब के पेड़ों से
झरी हुई कलियों को
कितना मौन है इनका गिरना
फूल चुपचाप सूखते हैं ....
डॉ. प्रतिभा सिंह
©Dr.Pratibha Singh
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