Dr.Pratibha Singh

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writer & poetess.Azamgadh (u.p.)

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#कविता #Ocean  
सुनो समुद्र!
तुम्हारे खारेपन में 
जीवन का स्वाद हो सकता है
किन्तु जीवन बिल्कुल नहीं
जीवन तो मिठास में है
जो नदियों की कोख में जन्मता है
विश्व की तमाम सभ्यताएं
तुम्हारे खारेपन से नहीं
नदी की मिठास से तृप्त हैं।
Dr.Pratibha singh

©Dr.Pratibha Singh

#Ocean

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#कविता #landscape  आँखों ने प्रेम की भाषा पढ़ी
और बंध गईं
उस एक अनजान से
जिसे देखने भर से 
उनका होना सार्थक हुआ
आँखों ने
घृणा की भाषा पढ़ी
और कोरों से फिसल गई
वितृष्णा की कहानी
आँखों ने सुख की भाषा पढ़ी
और चमकने लगीं 
माघ की धूप सी
आँखों ने ईर्ष्या,द्वेष और दुःख की भाषा पढ़ी
और डूब गईं उदासी की साँझ में
रात के चौथे पहर तक
आँखों ने धैर्य की भाषा पढ़ी
और स्थिर हो गईं 
समुद्र सी
अथाह 
अनन्त....
डॉ. प्रतिभा सिंह

©Dr.Pratibha Singh

#landscape

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मन्दिर की सीढ़ियों पर बैठेते हुए उसने मेरी हथेली को अपने हाथ में लेकर कहा तुम बिल्कुल फूल जैसी हो सुंदर,सुकोमल और सुगंध से भरी हुई तुम्हें देखने भर से आँखे तृप्त हो जाती हैं तुम्हें स्पर्श करते हुए मैं सम्भलता हूँ ठीक वैसे ही जैसे फूलों को तुम्हारी महक मेरी सांसों में चम्पा की सुंगन्ध सी घुलती है। और मैं.... बदहवास मन्दिर की सीढ़ियों पर बिखरे फूलों को देख रही थी जो आते- जाते पैरों से कुचले जा रहे थे बेपरवाह आस-पास गुड़हल,कनेर और गुलाब के पेड़ों से झरी हुई कलियों को कितना मौन है इनका गिरना फूल चुपचाप सूखते हैं .... डॉ. प्रतिभा सिंह ©Dr.Pratibha Singh

#कविता #Baagh  मन्दिर की सीढ़ियों पर बैठेते हुए
उसने मेरी हथेली को अपने हाथ में लेकर कहा
तुम बिल्कुल फूल जैसी हो
सुंदर,सुकोमल और सुगंध से भरी हुई
तुम्हें देखने भर से आँखे तृप्त हो जाती हैं
तुम्हें स्पर्श करते हुए मैं सम्भलता हूँ
ठीक वैसे ही जैसे फूलों को
तुम्हारी महक मेरी सांसों में
चम्पा की सुंगन्ध सी घुलती है।
और मैं....
 बदहवास
मन्दिर की सीढ़ियों पर बिखरे फूलों को देख रही थी
जो आते- जाते पैरों से कुचले जा रहे थे
बेपरवाह
आस-पास गुड़हल,कनेर और गुलाब के पेड़ों से
झरी हुई कलियों को
कितना मौन है इनका गिरना
फूल चुपचाप सूखते हैं ....

         डॉ. प्रतिभा सिंह

©Dr.Pratibha Singh

#Baagh

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रेत की तीरगी में सफ़र ही नहीं राह मिल भी गई रहगुजर ही नहीं बाद अरसे के मिल भी गई मंजिले मुड़ के देखा तो बाकी उमर ही नहीं।। डॉ. प्रतिभा सिंह ©Dr.Pratibha Singh

#कविता  रेत की तीरगी में सफ़र ही नहीं
राह मिल भी गई रहगुजर ही नहीं
बाद अरसे के मिल भी गई मंजिले
मुड़ के देखा तो बाकी उमर ही नहीं।।
डॉ. प्रतिभा सिंह

©Dr.Pratibha Singh

रेत की तीरगी में सफ़र ही नहीं राह मिल भी गई रहगुजर ही नहीं बाद अरसे के मिल भी गई मंजिले मुड़ के देखा तो बाकी उमर ही नहीं।। डॉ. प्रतिभा सिंह ©Dr.Pratibha Singh

13 Love

सुनो न! क्या तुम जानते हो ? तुम्हें पाने की अतृप्त कामना को हृदय में सँजोये रखने की कामना ही मेरा प्रेम है सच कहूँ ...! मैं तुम्हें पाना नहीं चाहती जानती हूँ कि पाना खोने की प्रक्रिया का प्रारम्भ है इसलिए तुम्हें खोने से ज्यादा पाने से डरती हूँ ***************** डॉ. प्रतिभा सिंह ©Dr.Pratibha Singh

#कविता #PARENTS  सुनो न!
क्या तुम जानते हो ?
तुम्हें पाने की अतृप्त कामना को
हृदय में सँजोये रखने की कामना ही
मेरा प्रेम है
सच कहूँ ...!
मैं तुम्हें पाना नहीं चाहती
जानती हूँ कि
पाना खोने की प्रक्रिया का प्रारम्भ है
इसलिए 
तुम्हें खोने से ज्यादा
पाने से डरती हूँ
*****************
डॉ. प्रतिभा सिंह

©Dr.Pratibha Singh

#PARENTS

13 Love

आँखों ने प्रेम की भाषा पढ़ी और बंध गईं उस एक अनजान से जिसे देखने भर से उनका होना सार्थक हुआ आँखों ने घृणा की भाषा पढ़ी और कोरों से फिसल गई वितृष्णा की कहानी आँखों ने सुख की भाषा पढ़ी और चमकने लगीं माघ की धूप सी आँखों ने ईर्ष्या,द्वेष और दुःख की भाषा पढ़ी और डूब गईं उदासी की साँझ में रात के चौथे पहर तक आँखों ने धैर्य की भाषा पढ़ी और स्थिर हो गईं समुद्र सी अथाह अनंत.... डॉ. प्रतिभा सिंह ©Dr.Pratibha Singh

#कविता  आँखों ने प्रेम की भाषा पढ़ी
और बंध गईं
उस एक अनजान से
जिसे देखने भर से 
उनका होना सार्थक हुआ
आँखों ने
घृणा की भाषा पढ़ी
और कोरों से फिसल गई
वितृष्णा की कहानी
आँखों ने सुख की भाषा पढ़ी
और चमकने लगीं 
माघ की धूप सी
आँखों ने ईर्ष्या,द्वेष और दुःख की भाषा पढ़ी
और डूब गईं उदासी की साँझ में
रात के चौथे पहर तक
आँखों ने धैर्य की भाषा पढ़ी
और स्थिर हो गईं 
समुद्र सी
अथाह अनंत....
डॉ. प्रतिभा सिंह

©Dr.Pratibha Singh

आँखों ने प्रेम की भाषा पढ़ी और बंध गईं उस एक अनजान से जिसे देखने भर से उनका होना सार्थक हुआ आँखों ने घृणा की भाषा पढ़ी और कोरों से फिसल गई वितृष्णा की कहानी आँखों ने सुख की भाषा पढ़ी और चमकने लगीं माघ की धूप सी आँखों ने ईर्ष्या,द्वेष और दुःख की भाषा पढ़ी और डूब गईं उदासी की साँझ में रात के चौथे पहर तक आँखों ने धैर्य की भाषा पढ़ी और स्थिर हो गईं समुद्र सी अथाह अनंत.... डॉ. प्रतिभा सिंह ©Dr.Pratibha Singh

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