आँखों ने प्रेम की भाषा पढ़ी और बंध गईं उस एक अनजान | हिंदी कविता

"आँखों ने प्रेम की भाषा पढ़ी और बंध गईं उस एक अनजान से जिसे देखने भर से उनका होना सार्थक हुआ आँखों ने घृणा की भाषा पढ़ी और कोरों से फिसल गई वितृष्णा की कहानी आँखों ने सुख की भाषा पढ़ी और चमकने लगीं माघ की धूप सी आँखों ने ईर्ष्या,द्वेष और दुःख की भाषा पढ़ी और डूब गईं उदासी की साँझ में रात के चौथे पहर तक आँखों ने धैर्य की भाषा पढ़ी और स्थिर हो गईं समुद्र सी अथाह अनंत.... डॉ. प्रतिभा सिंह ©Dr.Pratibha Singh"

 आँखों ने प्रेम की भाषा पढ़ी
और बंध गईं
उस एक अनजान से
जिसे देखने भर से 
उनका होना सार्थक हुआ
आँखों ने
घृणा की भाषा पढ़ी
और कोरों से फिसल गई
वितृष्णा की कहानी
आँखों ने सुख की भाषा पढ़ी
और चमकने लगीं 
माघ की धूप सी
आँखों ने ईर्ष्या,द्वेष और दुःख की भाषा पढ़ी
और डूब गईं उदासी की साँझ में
रात के चौथे पहर तक
आँखों ने धैर्य की भाषा पढ़ी
और स्थिर हो गईं 
समुद्र सी
अथाह अनंत....
डॉ. प्रतिभा सिंह

©Dr.Pratibha Singh

आँखों ने प्रेम की भाषा पढ़ी और बंध गईं उस एक अनजान से जिसे देखने भर से उनका होना सार्थक हुआ आँखों ने घृणा की भाषा पढ़ी और कोरों से फिसल गई वितृष्णा की कहानी आँखों ने सुख की भाषा पढ़ी और चमकने लगीं माघ की धूप सी आँखों ने ईर्ष्या,द्वेष और दुःख की भाषा पढ़ी और डूब गईं उदासी की साँझ में रात के चौथे पहर तक आँखों ने धैर्य की भाषा पढ़ी और स्थिर हो गईं समुद्र सी अथाह अनंत.... डॉ. प्रतिभा सिंह ©Dr.Pratibha Singh

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