रेत की तीरगी में सफ़र ही नहीं राह मिल भी गई रहगुजर | हिंदी कविता

"रेत की तीरगी में सफ़र ही नहीं राह मिल भी गई रहगुजर ही नहीं बाद अरसे के मिल भी गई मंजिले मुड़ के देखा तो बाकी उमर ही नहीं।। डॉ. प्रतिभा सिंह ©Dr.Pratibha Singh"

 रेत की तीरगी में सफ़र ही नहीं
राह मिल भी गई रहगुजर ही नहीं
बाद अरसे के मिल भी गई मंजिले
मुड़ के देखा तो बाकी उमर ही नहीं।।
डॉ. प्रतिभा सिंह

©Dr.Pratibha Singh

रेत की तीरगी में सफ़र ही नहीं राह मिल भी गई रहगुजर ही नहीं बाद अरसे के मिल भी गई मंजिले मुड़ के देखा तो बाकी उमर ही नहीं।। डॉ. प्रतिभा सिंह ©Dr.Pratibha Singh

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