मौत हूँ मैं
मौत हूँ मैं,
जी हाँ, मौत हूँ मैं।
दिलों को दहला दूँ सबके,
वो ख़ौफ़ हूँ मैं,
मेरा कोई दिन समय स्थान नहीं,
यही सब भी जानते हैं।
गलती मेरी भी होती कभी नहीं,
सब ही यही मानते हैं।
फिर भी देखो खौफ़ है मेरा,
मुझसे ही सब काँपते हैं।
मैं दिखता नहीं किसी को मगर,
मुझको भी सब भाँपते हैं।
गलती खुद ही ये करता मानव,
फिर मैं ही क्यों दिखता दानव।
ऐब ग्रस्त से यह लिप्त हो गया,
देखो अंधकार में खुद खो गया।
मारा-मारी का जो दौर चला है,
मुझको भी वहाँ जाना पड़ा है।
दिया कार्य जो ईश्वर ने मुझको,
कैसे छोड़ूं, बता अब मैं तुझको।
शेष कविता कल प्रेशित होगी.................................
©Devesh Dixit
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मौत हूँ मैं
मौत हूँ मैं,
जी हाँ, मौत हूँ मैं।
दिलों को दहला दूँ सबके,
वो ख़ौफ़ हूँ मैं,