लेकर बीती- बतिया, जागती थी वो सारी रतिया,
भय की ढेरों प्रतियां, सताती थी उसकी अंखिया,
जोर जोर से चीखे भी उसे दिन अरसे हो चले थे,
मौन मन के भीतर उसके आवाजे कितना गूंजे है,
सब कहते है पन्नो पे बस दुख ही दुख लिखती हूं,
किसे कहूं कि सुख में आते है साथ निभाने कुछ।।
~स्मृतकाव्य !!
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©smriti ki kalam se
#SAD