रहे सदियों के फ़ासले भी तो मेरा इंतेज़ार करे
जो न रहू रूबरू तो भी वो मेरा दीदार करे
हाँ आदत है मेरी उससे हुई लड़ाई भूल जाने की
और मेरी इस आदत से भी वो पहला सा प्यार करे
ये जो रोज़ का रविवार बैठे बैठे मिल बैठा है
वो अपने जज़्बात ही कम से कम मेरे आर पार करे
जब ठीक हो जाए आवाम तो मिलने आए वो मुझसे
इतर लगाए न लगाए पर काजल का भी श्रृंगार करे
वो दिन भी आए
जल्दी सुबह उठ कर दफ़्तर को देर से पहुँचूँ
बशर्ते मेरी बाहों में आकर वो मुझे तैयार करे
-फ़र्ज़ी गुलज़ार✍️
कुछ अपना लिखा❤️✍️
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