नेक इरादों की मंजिलों में, पत्थर नहीं अड़ते हैं उड | हिंदी Life

"नेक इरादों की मंजिलों में, पत्थर नहीं अड़ते हैं उड़ान लम्बी रखे, वहीं परिन्दें बुलंदी पकड़ते हैं अपनी लहरों पर बहुत ही, गुरूर हैं समंदर को मगर हम भी वो माँझी हैं, जो तूफाँ से लड़ते हैं गद्दारी-बेईमानी हमारी, फितरत में नहीं शामिल फक़त इसलिए सब शैतान, हमारे पाँव पड़ते हैं भले तुम लाख बीज बो लो, झूठ के दरख्तों का सच की आँधी आने पर, सारे शज़र उखड़ते हैं यकीं पहले जैसा कहाँ, बचा हैं आज रिश्तों में लहू के रिश्ते भी आज, पल-भर में बिगड़ते हैं सभी होने को उतारू हैं, फरेब के परवरदीगार जो सच्ची बात कहते, उनसे ही सब झगड़ते हैं जो लीक छोड़कर बनाते हैं, खुद ही अपनी राहें वहीं सरताज में मेहनत के मोती, बेमोल जड़ते हैं खुदा भी देता हैं मौके, उन्हें जो करते हैं कोशिश ज्यों जुते हुए खेत के, ऊपर ही बादल घुमड़ते हैं शामो-सहर उनको भले ही, कितना ही पानी दो पतझड़ के मौसम में हर शाख से पत्ते झड़ते हैं सारी उम्र लड़ते रहे, ज़मीनो-जायदाद के वास्ते क्यूँ भूल गए सब यहाँ, दो गज जमीं में गड़ते हैं होना हैं ख़ाक सबको, हकीक़त हैं यहीं अपनी न जाने फिर कौनसी बात पर, लोग अकड़ते हैं"

 नेक इरादों की मंजिलों में, पत्थर नहीं अड़ते हैं
उड़ान लम्बी रखे, वहीं परिन्दें बुलंदी पकड़ते हैं
अपनी लहरों पर बहुत ही, गुरूर हैं समंदर को
मगर हम भी वो माँझी हैं, जो तूफाँ से लड़ते हैं
गद्दारी-बेईमानी हमारी, फितरत में नहीं शामिल
फक़त इसलिए सब शैतान, हमारे पाँव पड़ते हैं
भले तुम लाख बीज बो लो, झूठ के दरख्तों का
सच की आँधी आने पर, सारे शज़र उखड़ते हैं
यकीं पहले जैसा कहाँ, बचा हैं आज रिश्तों में
लहू के रिश्ते भी आज, पल-भर में बिगड़ते हैं
सभी होने को उतारू हैं, फरेब के परवरदीगार
जो सच्ची बात कहते, उनसे ही सब झगड़ते हैं
जो लीक छोड़कर बनाते हैं, खुद ही अपनी राहें
वहीं सरताज में मेहनत के मोती, बेमोल जड़ते हैं
खुदा भी देता हैं मौके, उन्हें जो करते हैं कोशिश
ज्यों जुते हुए खेत के, ऊपर ही बादल घुमड़ते हैं
शामो-सहर उनको भले ही, कितना ही पानी दो
पतझड़ के मौसम में हर शाख से पत्ते झड़ते हैं
सारी उम्र लड़ते रहे, ज़मीनो-जायदाद के वास्ते
क्यूँ भूल गए सब यहाँ, दो गज जमीं में गड़ते हैं
होना हैं ख़ाक सबको, हकीक़त हैं यहीं अपनी
न जाने फिर कौनसी बात पर, लोग अकड़ते हैं

नेक इरादों की मंजिलों में, पत्थर नहीं अड़ते हैं उड़ान लम्बी रखे, वहीं परिन्दें बुलंदी पकड़ते हैं अपनी लहरों पर बहुत ही, गुरूर हैं समंदर को मगर हम भी वो माँझी हैं, जो तूफाँ से लड़ते हैं गद्दारी-बेईमानी हमारी, फितरत में नहीं शामिल फक़त इसलिए सब शैतान, हमारे पाँव पड़ते हैं भले तुम लाख बीज बो लो, झूठ के दरख्तों का सच की आँधी आने पर, सारे शज़र उखड़ते हैं यकीं पहले जैसा कहाँ, बचा हैं आज रिश्तों में लहू के रिश्ते भी आज, पल-भर में बिगड़ते हैं सभी होने को उतारू हैं, फरेब के परवरदीगार जो सच्ची बात कहते, उनसे ही सब झगड़ते हैं जो लीक छोड़कर बनाते हैं, खुद ही अपनी राहें वहीं सरताज में मेहनत के मोती, बेमोल जड़ते हैं खुदा भी देता हैं मौके, उन्हें जो करते हैं कोशिश ज्यों जुते हुए खेत के, ऊपर ही बादल घुमड़ते हैं शामो-सहर उनको भले ही, कितना ही पानी दो पतझड़ के मौसम में हर शाख से पत्ते झड़ते हैं सारी उम्र लड़ते रहे, ज़मीनो-जायदाद के वास्ते क्यूँ भूल गए सब यहाँ, दो गज जमीं में गड़ते हैं होना हैं ख़ाक सबको, हकीक़त हैं यहीं अपनी न जाने फिर कौनसी बात पर, लोग अकड़ते हैं

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