Aditya Ans [Aditya Raj Chhatrapati]

Aditya Ans [Aditya Raj Chhatrapati] Lives in Jaipur, Rajasthan, India

Poet, Writer, Stage Anchor

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फक़त वो दर्द देता हैं, यहीं नासूर की फितरत वो सबसे जीतना चाहें, यहीं मंसूर की फितरत दर्द रूपी हलाहल को, 'पीयूष' मानकर पीना यहीं मीरा कबीरा की, यहीं हैं सूर की फितरत

#विचार #CupOfHappiness #mypoetry149 #kabeera #halahal  फक़त वो दर्द देता हैं, यहीं नासूर की फितरत
वो सबसे जीतना चाहें, यहीं मंसूर की फितरत
दर्द रूपी हलाहल को, 'पीयूष' मानकर पीना 
यहीं मीरा कबीरा की, यहीं हैं सूर की फितरत

हिंदी मेरी पहचान है, हिंदी दिवस हिन्दी भारत माँ का गौरव, पुण्य भाव समर्पण हैं जन-जन की बोली हिन्दी, समरसता का दर्पण हैं चाणक्य-सी हैं जटिल भी, हैं कबीर-सी सरल भी चट्टानों सी हैं कठोर भी, हैं करूणा-सी तरल भी संज्ञा, समास तथा सर्वनाम, शोभा बढ़ाता अलंकार रस घोलते वीर, वीभत्स, हास्य, करूण व श्रृंगार छंद, गीत, मुक्तक, कविता, सुनकर मन कमल खिलता संचारित होती मधुर लहर, चंचल मन को सुख मिलता हिन्दी से सुभद्रा- महादेवी हिन्दी से पंत निराला भी हिन्दी ही नीरज की वाणी, बच्चन की मधुशाला भी हिन्दी स्वर हैं गायन का , हिन्दी मनभाव की परिभाषा हिन्दी हैं माँ का वन्दन, हिन्दी कविमन की अभिलाषा यदि भारती माँ दुल्हन, दुल्हन के मस्तक की बिंदी हिंदी से हिन्दुस्तान हैं, हम सबको प्यारी हैं हिन्दी

 हिंदी मेरी पहचान है, हिंदी दिवस हिन्दी भारत माँ का गौरव, पुण्य भाव समर्पण हैं
जन-जन की बोली हिन्दी, समरसता का दर्पण हैं

चाणक्य-सी हैं जटिल भी, हैं कबीर-सी सरल भी
चट्टानों सी हैं कठोर भी, हैं करूणा-सी तरल भी

संज्ञा, समास तथा सर्वनाम, शोभा बढ़ाता अलंकार
रस घोलते वीर, वीभत्स, हास्य, करूण व श्रृंगार

छंद, गीत, मुक्तक, कविता, सुनकर मन कमल खिलता
संचारित होती मधुर लहर, चंचल मन को सुख मिलता

हिन्दी से सुभद्रा- महादेवी हिन्दी से पंत निराला भी
हिन्दी ही नीरज की वाणी, बच्चन की मधुशाला भी

हिन्दी स्वर हैं गायन का , हिन्दी मनभाव की परिभाषा
हिन्दी हैं माँ का वन्दन, हिन्दी कविमन की अभिलाषा

यदि भारती माँ दुल्हन, दुल्हन के मस्तक की बिंदी
हिंदी से हिन्दुस्तान हैं, हम सबको प्यारी हैं हिन्दी

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किसी की याद में जीना बहुत मुश्किल जमाने में एक कोना बचाकर रखना दिल के आशियाने में बिछड़कर इश्क़ ना रहेगा गलत हैं ये सोचना तेरा मुहब्बत की सदाकत हैं बिछड़कर के निभाने में

#मुहब्बत #इश्क़ #सदाकत #nojotoofficial #NojotoFamily #nojotojaipur  किसी की याद में जीना बहुत मुश्किल जमाने में
एक कोना बचाकर रखना दिल के आशियाने में
बिछड़कर इश्क़ ना रहेगा गलत हैं ये सोचना तेरा
मुहब्बत की सदाकत हैं बिछड़कर के निभाने में

नेक इरादों की मंजिलों में, पत्थर नहीं अड़ते हैं उड़ान लम्बी रखे, वहीं परिन्दें बुलंदी पकड़ते हैं अपनी लहरों पर बहुत ही, गुरूर हैं समंदर को मगर हम भी वो माँझी हैं, जो तूफाँ से लड़ते हैं गद्दारी-बेईमानी हमारी, फितरत में नहीं शामिल फक़त इसलिए सब शैतान, हमारे पाँव पड़ते हैं भले तुम लाख बीज बो लो, झूठ के दरख्तों का सच की आँधी आने पर, सारे शज़र उखड़ते हैं यकीं पहले जैसा कहाँ, बचा हैं आज रिश्तों में लहू के रिश्ते भी आज, पल-भर में बिगड़ते हैं सभी होने को उतारू हैं, फरेब के परवरदीगार जो सच्ची बात कहते, उनसे ही सब झगड़ते हैं जो लीक छोड़कर बनाते हैं, खुद ही अपनी राहें वहीं सरताज में मेहनत के मोती, बेमोल जड़ते हैं खुदा भी देता हैं मौके, उन्हें जो करते हैं कोशिश ज्यों जुते हुए खेत के, ऊपर ही बादल घुमड़ते हैं शामो-सहर उनको भले ही, कितना ही पानी दो पतझड़ के मौसम में हर शाख से पत्ते झड़ते हैं सारी उम्र लड़ते रहे, ज़मीनो-जायदाद के वास्ते क्यूँ भूल गए सब यहाँ, दो गज जमीं में गड़ते हैं होना हैं ख़ाक सबको, हकीक़त हैं यहीं अपनी न जाने फिर कौनसी बात पर, लोग अकड़ते हैं

#nojotoofficial #NojotoFamily #nojotojaipur #nojotohindi #mypoetry149 #nojotourdu  नेक इरादों की मंजिलों में, पत्थर नहीं अड़ते हैं
उड़ान लम्बी रखे, वहीं परिन्दें बुलंदी पकड़ते हैं
अपनी लहरों पर बहुत ही, गुरूर हैं समंदर को
मगर हम भी वो माँझी हैं, जो तूफाँ से लड़ते हैं
गद्दारी-बेईमानी हमारी, फितरत में नहीं शामिल
फक़त इसलिए सब शैतान, हमारे पाँव पड़ते हैं
भले तुम लाख बीज बो लो, झूठ के दरख्तों का
सच की आँधी आने पर, सारे शज़र उखड़ते हैं
यकीं पहले जैसा कहाँ, बचा हैं आज रिश्तों में
लहू के रिश्ते भी आज, पल-भर में बिगड़ते हैं
सभी होने को उतारू हैं, फरेब के परवरदीगार
जो सच्ची बात कहते, उनसे ही सब झगड़ते हैं
जो लीक छोड़कर बनाते हैं, खुद ही अपनी राहें
वहीं सरताज में मेहनत के मोती, बेमोल जड़ते हैं
खुदा भी देता हैं मौके, उन्हें जो करते हैं कोशिश
ज्यों जुते हुए खेत के, ऊपर ही बादल घुमड़ते हैं
शामो-सहर उनको भले ही, कितना ही पानी दो
पतझड़ के मौसम में हर शाख से पत्ते झड़ते हैं
सारी उम्र लड़ते रहे, ज़मीनो-जायदाद के वास्ते
क्यूँ भूल गए सब यहाँ, दो गज जमीं में गड़ते हैं
होना हैं ख़ाक सबको, हकीक़त हैं यहीं अपनी
न जाने फिर कौनसी बात पर, लोग अकड़ते हैं

लड़कियाँ : हिन्दुस्तान की """"""""""""""""""""" पहले-पहल परख करवाईं, मेरे तन के संदर्भ में फिर करी कोशिश तुमने, मुझे मारने की गर्भ में गर फिर भी बचकर आईं अपनी माँ की कोख से फेंक दिया जंगल में मुझको, रोते-बिलखते दर्भ में आत्माएं क्या सबकी जाकर बैठ गई शमशान में लड़कियाँ महफ़ूज नहीं क्यूँ, अपने हिन्दुस्तान में धीरे-धीरे उम्र बढ़ी जो, तन तरुणाई छाने लगी गुजरते लोगों की नजरें, मन घृणा बरपाने लगी बदनीयत से छुआ किसी ने, ताना कोई मार गया जीवन नर्क लगने लगा, शर्म जीने में आने लगी लड़के हो बदहोश रहते, जाने किस अभिमान में लड़कियाँ महफ़ूज नहीं क्यूँ, अपने हिन्दुस्तान में लेकर कर्जा मात-पिता ने, ब्याही बिटिया चाव से ख़ूब कीं मनुहार किन्तु टक्का न गिरा तय भाव से पीट-पीटकर कहते मुझको, और लाओ दहेज़-धन ला न सकी पीहर से कुछ तो जला दिया मुझे ताव से बाप बेचारा सोचता, क्या कमी रही कन्यादान में लड़कियाँ महफ़ूज नहीं क्यूँ, अपने हिन्दुस्तान में संग अन्याय की गाथा तो, युग-युग से चलती आई कभी जुए में हार गए, कभी अग्निपरीक्षा दिलवाई भरी सभा में की गई थी कोशिश निर्वस्त्र करने की मुझको दाँव पर लगते देखा, शर्म भी खुद शरमाई अपमानित होना ही बस लिखा हैं विधि-विधान में लड़कियाँ महफ़ूज नहीं क्यूँ, अपने हिन्दुस्तान में हमने भी देश सम्भाला, हम भी राष्ट्र की प्राचीर बनी पड़ी जरूरत जब देश को, अस्त्र-शस्त्र शमशीर बनी सरोजनी, लक्ष्मीबाई हम, हम इन्दिरा मदर टेरेसा हैं सुभद्रा, महादेवी प्रमाण हम साहित्य की तहरीर बनी पन्नाधाय का त्याग पढ़ो तुम, दिया पुत्र बलिदान में लड़कियाँ महफ़ूज नहीं क्यूँ, अपने हिन्दुस्तान में ✍ आदित्य राज छत्रपति 'अंस'

#लड़कियाँ_हिन्दुस्तान_की #stop_violence_against_girls #mypoetry149 #Feminism  लड़कियाँ : हिन्दुस्तान की
"""""""""""""""""""""
पहले-पहल परख करवाईं, मेरे तन के संदर्भ में
फिर करी कोशिश तुमने, मुझे मारने की गर्भ में
गर फिर भी बचकर आईं अपनी माँ की कोख से
फेंक दिया जंगल में मुझको, रोते-बिलखते दर्भ में
आत्माएं क्या सबकी जाकर बैठ गई शमशान में
लड़कियाँ महफ़ूज नहीं क्यूँ, अपने हिन्दुस्तान में

धीरे-धीरे उम्र बढ़ी जो, तन तरुणाई छाने लगी
गुजरते लोगों की नजरें, मन घृणा बरपाने लगी
बदनीयत से छुआ किसी ने, ताना कोई मार गया
जीवन नर्क लगने लगा, शर्म जीने में आने लगी
लड़के हो बदहोश रहते, जाने किस अभिमान में
लड़कियाँ महफ़ूज नहीं क्यूँ, अपने हिन्दुस्तान में

लेकर कर्जा मात-पिता ने, ब्याही बिटिया चाव से
ख़ूब कीं मनुहार किन्तु टक्का न गिरा तय भाव से
पीट-पीटकर कहते मुझको, और लाओ दहेज़-धन
ला न सकी पीहर से कुछ तो जला दिया मुझे ताव से
बाप बेचारा सोचता, क्या कमी रही कन्यादान में
लड़कियाँ महफ़ूज नहीं क्यूँ, अपने हिन्दुस्तान में

संग अन्याय की गाथा तो, युग-युग से चलती आई
कभी जुए में हार गए, कभी अग्निपरीक्षा दिलवाई
भरी सभा में की गई थी कोशिश निर्वस्त्र करने की
मुझको दाँव पर लगते देखा, शर्म भी खुद शरमाई
अपमानित होना ही बस लिखा हैं विधि-विधान में
लड़कियाँ महफ़ूज नहीं क्यूँ, अपने हिन्दुस्तान में

हमने भी देश सम्भाला, हम भी राष्ट्र की प्राचीर बनी
पड़ी जरूरत जब देश को, अस्त्र-शस्त्र शमशीर बनी
सरोजनी, लक्ष्मीबाई हम, हम इन्दिरा मदर टेरेसा हैं
सुभद्रा, महादेवी प्रमाण हम साहित्य की तहरीर बनी
पन्नाधाय का त्याग पढ़ो तुम, दिया पुत्र बलिदान में
लड़कियाँ महफ़ूज नहीं क्यूँ, अपने हिन्दुस्तान में

✍ आदित्य राज छत्रपति 'अंस'

मकर संक्रांति कविता विशेष - मकर सक्रांति :- कटी पतंग बची डोर हर तरफ हल्ला हैं ये ही, हर तरफ ये ही शोर। तिल के लड्डू खाने में, कटी पतंग बची डोर।। सक्रांति त्यौहार हैं मित्रों, दान धर्म उपकार का रहे ना कोई जन वंचित, खुशियों से इस संसार का। पर सेवा ही परम धर्म हैं, शुभ हो जाए हर भोर तिल के लड्डू खाने में, कटी पतंग बची डोर।१। ओढ़ाने और पहनाने का, इस पर्व पर हैं रिवाज छू के चरण बुजुर्गों के, करते हम खुद पर नाज। मिट जाती हैं सब दुख पीड़ा, होती खुशियाँ चहुँओर तिल के लड्डू खाने में, कटी पतंग बची डोर।२। देने से कुछ कम नहीं होता, बढ़ जाते हैं कोष खुशियाँ गम आते रहते हैं, नहीं किसी का दोष। सब की गाड़ी वो ही हाँके, चले ना 'अंस' का जोर तिल के लड्डू खाने में, कटी पतंग बची डोर।३। हर तरफ हल्ला हैं ये ही, हर तरफ ये ही शोर। तिल के लड्डू खाने में, कटी पतंग बची डोर।।

#मकरसंक्रांति #उत्तरायण #nojotoofficial #makarsankranti #NojotoFamily #nojotojaipur  मकर संक्रांति कविता विशेष - मकर सक्रांति 
:- कटी पतंग बची डोर

हर तरफ हल्ला हैं ये ही, हर तरफ ये ही शोर।
तिल के लड्डू खाने में, कटी पतंग बची डोर।। 

सक्रांति त्यौहार हैं मित्रों, दान धर्म उपकार का
रहे ना कोई जन वंचित, खुशियों से इस संसार का। 
पर सेवा ही परम धर्म हैं, शुभ हो जाए हर भोर 
तिल के लड्डू खाने में, कटी पतंग बची डोर।१।

ओढ़ाने और पहनाने का, इस पर्व पर हैं रिवाज
छू के चरण बुजुर्गों के, करते हम खुद पर नाज।
मिट जाती हैं सब दुख पीड़ा, होती खुशियाँ चहुँओर
तिल के लड्डू खाने में, कटी पतंग बची डोर।२।

देने से कुछ कम नहीं होता, बढ़ जाते हैं कोष 
खुशियाँ गम आते रहते हैं, नहीं किसी का दोष।
सब की गाड़ी वो ही हाँके, चले ना 'अंस' का जोर
तिल के लड्डू खाने में, कटी पतंग बची डोर।३।

हर तरफ हल्ला हैं ये ही, हर तरफ ये ही शोर।
तिल के लड्डू खाने में, कटी पतंग बची डोर।।
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