मकर संक्रांति कविता विशेष - मकर सक्रांति :- कटी प

"मकर संक्रांति कविता विशेष - मकर सक्रांति :- कटी पतंग बची डोर हर तरफ हल्ला हैं ये ही, हर तरफ ये ही शोर। तिल के लड्डू खाने में, कटी पतंग बची डोर।। सक्रांति त्यौहार हैं मित्रों, दान धर्म उपकार का रहे ना कोई जन वंचित, खुशियों से इस संसार का। पर सेवा ही परम धर्म हैं, शुभ हो जाए हर भोर तिल के लड्डू खाने में, कटी पतंग बची डोर।१। ओढ़ाने और पहनाने का, इस पर्व पर हैं रिवाज छू के चरण बुजुर्गों के, करते हम खुद पर नाज। मिट जाती हैं सब दुख पीड़ा, होती खुशियाँ चहुँओर तिल के लड्डू खाने में, कटी पतंग बची डोर।२। देने से कुछ कम नहीं होता, बढ़ जाते हैं कोष खुशियाँ गम आते रहते हैं, नहीं किसी का दोष। सब की गाड़ी वो ही हाँके, चले ना 'अंस' का जोर तिल के लड्डू खाने में, कटी पतंग बची डोर।३। हर तरफ हल्ला हैं ये ही, हर तरफ ये ही शोर। तिल के लड्डू खाने में, कटी पतंग बची डोर।। #NojotoQuote"

 मकर संक्रांति कविता विशेष - मकर सक्रांति 
:- कटी पतंग बची डोर

हर तरफ हल्ला हैं ये ही, हर तरफ ये ही शोर।
तिल के लड्डू खाने में, कटी पतंग बची डोर।। 

सक्रांति त्यौहार हैं मित्रों, दान धर्म उपकार का
रहे ना कोई जन वंचित, खुशियों से इस संसार का। 
पर सेवा ही परम धर्म हैं, शुभ हो जाए हर भोर 
तिल के लड्डू खाने में, कटी पतंग बची डोर।१।

ओढ़ाने और पहनाने का, इस पर्व पर हैं रिवाज
छू के चरण बुजुर्गों के, करते हम खुद पर नाज।
मिट जाती हैं सब दुख पीड़ा, होती खुशियाँ चहुँओर
तिल के लड्डू खाने में, कटी पतंग बची डोर।२।

देने से कुछ कम नहीं होता, बढ़ जाते हैं कोष 
खुशियाँ गम आते रहते हैं, नहीं किसी का दोष।
सब की गाड़ी वो ही हाँके, चले ना 'अंस' का जोर
तिल के लड्डू खाने में, कटी पतंग बची डोर।३।

हर तरफ हल्ला हैं ये ही, हर तरफ ये ही शोर।
तिल के लड्डू खाने में, कटी पतंग बची डोर।। #NojotoQuote

मकर संक्रांति कविता विशेष - मकर सक्रांति :- कटी पतंग बची डोर हर तरफ हल्ला हैं ये ही, हर तरफ ये ही शोर। तिल के लड्डू खाने में, कटी पतंग बची डोर।। सक्रांति त्यौहार हैं मित्रों, दान धर्म उपकार का रहे ना कोई जन वंचित, खुशियों से इस संसार का। पर सेवा ही परम धर्म हैं, शुभ हो जाए हर भोर तिल के लड्डू खाने में, कटी पतंग बची डोर।१। ओढ़ाने और पहनाने का, इस पर्व पर हैं रिवाज छू के चरण बुजुर्गों के, करते हम खुद पर नाज। मिट जाती हैं सब दुख पीड़ा, होती खुशियाँ चहुँओर तिल के लड्डू खाने में, कटी पतंग बची डोर।२। देने से कुछ कम नहीं होता, बढ़ जाते हैं कोष खुशियाँ गम आते रहते हैं, नहीं किसी का दोष। सब की गाड़ी वो ही हाँके, चले ना 'अंस' का जोर तिल के लड्डू खाने में, कटी पतंग बची डोर।३। हर तरफ हल्ला हैं ये ही, हर तरफ ये ही शोर। तिल के लड्डू खाने में, कटी पतंग बची डोर।।

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