अजीब सी बैचेनी,
घर आंगन सुना,
वीरान सी जिंदगी,
ठहरा हुआ वातावरण,
जब नहीं होता
उनका अस्तित्व,
हल्की सी
आहट से
खिल उठता
घर आँगन,
आने से उनके
नाचती घर की फिजायें,
गति मिलती दिशा को,
सुधरती दशा,
रंग घुलते जीवन में,
जब होते हैं
साथ पिता,
बरगद की सी छांव,
पहाड़ की सी ओट,
कश्ती को
लगाते किनारे
बन कर मांझी,
हर सवाल जा जवाब
बस एक ही शब्द
पिता...
Adv Rakesh bauddh