ममता की मार🥺 मैं बाबा साहेब के विषय में बोल नहीं | हिंदी कविता

"ममता की मार🥺 मैं बाबा साहेब के विषय में बोल नहीं पाऊंगा, क्योंकि शुरुआत में आंख के आंसू , लब्ज़ को लड़खड़ा देते हैं, रीढ़ तो सीधी होती हैं, मगर तीव्र सांसे धड़कन बढ़ा देती हैं, गर्व से मैं दुबला फूल कर बलिष्ठ हो जाता हूं, मगर खड़े पैर ज़मीन पे लड़खड़ा जाते हैं, शब्दों के वेग तन को ताव देते, मगर कंठ में उपजी लार उसे दाब देती हैं, बोलना तो बहुत चाहता हूं, मगर आंख की निर्मल धारा शब्दो को मार देती हैं। लेखक __ अमित कुमार💙 ©AMIT KUMAR KASHYAP"

 ममता की मार🥺

मैं बाबा साहेब के विषय में बोल नहीं पाऊंगा,
क्योंकि शुरुआत में आंख के आंसू ,
लब्ज़ को लड़खड़ा देते हैं,

रीढ़ तो सीधी होती हैं,
मगर तीव्र सांसे धड़कन बढ़ा देती हैं,

गर्व से मैं दुबला फूल कर बलिष्ठ हो जाता हूं,
मगर खड़े पैर ज़मीन पे लड़खड़ा जाते हैं,

शब्दों के वेग तन को ताव देते,
मगर कंठ में उपजी लार उसे दाब देती हैं,
बोलना तो बहुत चाहता हूं,
मगर आंख की निर्मल धारा शब्दो को मार देती हैं।



लेखक __ अमित कुमार💙

©AMIT KUMAR KASHYAP

ममता की मार🥺 मैं बाबा साहेब के विषय में बोल नहीं पाऊंगा, क्योंकि शुरुआत में आंख के आंसू , लब्ज़ को लड़खड़ा देते हैं, रीढ़ तो सीधी होती हैं, मगर तीव्र सांसे धड़कन बढ़ा देती हैं, गर्व से मैं दुबला फूल कर बलिष्ठ हो जाता हूं, मगर खड़े पैर ज़मीन पे लड़खड़ा जाते हैं, शब्दों के वेग तन को ताव देते, मगर कंठ में उपजी लार उसे दाब देती हैं, बोलना तो बहुत चाहता हूं, मगर आंख की निर्मल धारा शब्दो को मार देती हैं। लेखक __ अमित कुमार💙 ©AMIT KUMAR KASHYAP

#Hum_bhartiya_hain

People who shared love close

More like this

Trending Topic