जिन्होने देश के सम्मान को, खंडित किया।
हमने उनको फिर भी,महिमा मंडित किया।।
हवा में उछाल दी आवरू, उसने नारीशक्ति की।
अब भी पूजा हो रही,,,,,,, दानवी व्यक्तित्व की।।
धरा पर रक्तबीजों की लता, शजहर होने न पाये ।
हे ! चंडी संहार कर,,,,,,,,,,,आसुरीय अस्तित्व का।।
पग-पग पर दुशासन हैं,,,, राजनीति गलियारों में ।
करुण रूदन क्यूँ करती हो अन्धों के दरवारौं में।।
अब ना कोई कृष्ण बचा, जो आकर लाज बचायेगा।
रक्षक ही जब भक्षक हो, तो कोंन भला समझाएगा।।
हे ! नारी तुम सबला हो,,,,,,अबला मान रही हो क्यूँ?
अष्ट भुजाओं की शक्ति का, रहा तुम्हें संज्ञान न क्यूँ?
खड़क, तेज,तलवार उठाऔ,रहे लहू निज खप्पर में।
पापी का वक्ष चीर डालो, उड़े रून्ड वहु अंम्बर में।।
क्रमश:
धीरेन्द्र सिंह तोमर
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