Kavi Dheerendra Singh Tomar

Kavi Dheerendra Singh Tomar Lives in Morena, Madhya Pradesh, India

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संसार दु:खी हो जाता है, जब लीख बदल दी जाती है। सड़कों पे खड़ी गऊ माता की, जब व्यथा दिखाई देती है।। फिरती भूखी प्यासी है, वह वेबस और लाचार यहाँ। पाया था मां का दर्जा जो, वह भी तो अब सत्कार कहाँ।। ये नयन आश्रुमय होते है, मां जिंदा काटी जाती है। सड़कों पे खड़ी गऊ माता की, जब व्यथा दिखाई देती है।।

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शब्दो की माला गड़कर तो देखो, कभी गीत गजलें पढ़कर तो देखो। भाव पल में ही दिल का बदल जायेगा, मान बेठा हे खुद को तू मिट्टी का कण।

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करो खुद को बुलंद इतना

 करो खुद को बुलंद इतना

नये प्रतिमान गड़ने हो,,,,,,,तो खुद के साथ आओ तुम। तपा कर स्वयं का सीना, बनके दिनकर दिखाओ तुम।। करो खुद को बुलन्द इतना, सलामी ठोक दे दुनियाँ। जो कहते हैं नही सम्भव, उसे सम्भव बनाओ तुम।। जब दुनियाँ में जन्म लिया तो, यूँही नही मिटजाना है। काल जीतकर, हालातो का, पहला विगुल बजाना हैं।।

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नये प्रतिमान गड़ने हो,,,,,,,तो खुद के साथ आओ तुम। तपा कर स्वयं का सीना, बनके दिनकर दिखाओ तुम।। करो खुद को बुलन्द इतना, सलामी ठोक दे दुनियाँ। जो कहते हैं नही सम्भव, उसे सम्भव बनाओ तुम।। जब दुनियाँ में जन्म लिया तो, यूँही नही मिटजाना है। काल जीतकर, हालातो का, पहला विगुल बजाना हैं।। कितनी भी विकराल हार हो, उसको जीत बनादो तुम। छोड़ सहारा दुनियाँ का, खुद का परचम लहरा दो तुम।। दिखलादो दुनियाँ को फिर से, हम भी खुद में सानी हैं। परवस होकर गुजर जाये जो, हम एसी नही जवानी हैं।। यम भी आकर रस्ता रोके, तो उनका अभिनंदन है। मर्यादा की गरिमा रखकर, उनके चरनों में बंदन है।। पर जबतक लक्ष्य अधूरा है, मेरा मरना यूँ उचित नही। फिर चाहे युध्द काल से हो, तो मेरा प्रभु से युध्द सही।। धीरेन्द्र सिंह तोमर ✍✍✍✍✍

 नये प्रतिमान गड़ने हो,,,,,,,तो खुद के साथ आओ तुम।
तपा कर स्वयं का सीना, बनके दिनकर दिखाओ तुम।।

करो खुद को बुलन्द इतना, सलामी ठोक दे दुनियाँ।
जो कहते हैं नही सम्भव, उसे सम्भव बनाओ तुम।।

जब दुनियाँ में जन्म लिया तो, यूँही नही मिटजाना है।
काल जीतकर, हालातो का, पहला विगुल बजाना हैं।।

कितनी भी विकराल हार हो, उसको जीत बनादो तुम।
छोड़ सहारा दुनियाँ का, खुद का परचम लहरा दो तुम।।

दिखलादो दुनियाँ को फिर से, हम भी खुद में सानी हैं।
परवस होकर गुजर जाये जो, हम एसी नही जवानी हैं।।

यम भी आकर रस्ता रोके, तो उनका अभिनंदन है।
मर्यादा की गरिमा रखकर, उनके चरनों में बंदन है।। 

पर जबतक लक्ष्य अधूरा है, मेरा मरना यूँ उचित नही।
फिर चाहे युध्द काल से हो, तो मेरा प्रभु से युध्द सही।।

धीरेन्द्र सिंह तोमर
✍✍✍✍✍

नये प्रतिमान गड़ने हो,,,,,,,तो खुद के साथ आओ तुम। तपा कर स्वयं का सीना, बनके दिनकर दिखाओ तुम।। करो खुद को बुलन्द इतना, सलामी ठोक दे दुनियाँ। जो कहते हैं नही सम्भव, उसे सम्भव बनाओ तुम।। जब दुनियाँ में जन्म लिया तो, यूँही नही मिटजाना है। काल जीतकर, हालातो का, पहला विगुल बजाना हैं।। कितनी भी विकराल हार हो, उसको जीत बनादो तुम। छोड़ सहारा दुनियाँ का, खुद का परचम लहरा दो तुम।। दिखलादो दुनियाँ को फिर से, हम भी खुद में सानी हैं। परवस होकर गुजर जाये जो, हम एसी नही जवानी हैं।। यम भी आकर रस्ता रोके, तो उनका अभिनंदन है। मर्यादा की गरिमा रखकर, उनके चरनों में बंदन है।। पर जबतक लक्ष्य अधूरा है, मेरा मरना यूँ उचित नही। फिर चाहे युध्द काल से हो, तो मेरा प्रभु से युध्द सही।। धीरेन्द्र सिंह तोमर ✍✍✍✍✍

4 Love

जिन्होने देश के सम्मान को, खंडित किया। हमने उनको फिर भी,महिमा मंडित किया।। हवा में उछाल दी आवरू, उसने नारीशक्ति की। अब भी पूजा हो रही,,,,,,, दानवी व्यक्तित्व की।। धरा पर रक्तबीजों की लता, शजहर होने न पाये । हे ! चंडी संहार कर,,,,,,,,,,,आसुरीय अस्तित्व का।। पग-पग पर दुशासन हैं,,,, राजनीति गलियारों में । करुण रूदन क्यूँ करती हो अन्धों के दरवारौं में।। अब ना कोई कृष्ण बचा, जो आकर लाज बचायेगा। रक्षक ही जब भक्षक हो, तो कोंन भला समझाएगा।। हे ! नारी तुम सबला हो,,,,,,अबला मान रही हो क्यूँ? अष्ट भुजाओं की शक्ति का, रहा तुम्हें संज्ञान न क्यूँ? खड़क, तेज,तलवार उठाऔ,रहे लहू निज खप्पर में। पापी का वक्ष चीर डालो, उड़े रून्ड वहु अंम्बर में।। क्रमश: धीरेन्द्र सिंह तोमर ✍✍✍✍✍

 जिन्होने देश के सम्मान को, खंडित किया।
हमने उनको फिर भी,महिमा मंडित किया।।

हवा में उछाल दी आवरू, उसने नारीशक्ति की।
अब भी पूजा हो रही,,,,,,, दानवी व्यक्तित्व की।।

धरा पर रक्तबीजों की लता, शजहर होने न पाये ।
हे ! चंडी संहार कर,,,,,,,,,,,आसुरीय अस्तित्व का।।

पग-पग पर दुशासन हैं,,,, राजनीति गलियारों में ।
करुण रूदन क्यूँ करती हो अन्धों के दरवारौं में।।

अब ना कोई कृष्ण बचा, जो आकर लाज बचायेगा।
रक्षक ही जब भक्षक हो, तो कोंन भला समझाएगा।।

हे ! नारी तुम सबला हो,,,,,,अबला मान रही हो क्यूँ?
अष्ट भुजाओं की शक्ति का, रहा तुम्हें संज्ञान न क्यूँ?

खड़क, तेज,तलवार उठाऔ,रहे लहू निज खप्पर में।
पापी का वक्ष चीर डालो, उड़े रून्ड वहु अंम्बर में।।
क्रमश:

धीरेन्द्र सिंह तोमर
✍✍✍✍✍

जिन्होने देश के सम्मान को, खंडित किया। हमने उनको फिर भी,महिमा मंडित किया।। हवा में उछाल दी आवरू, उसने नारीशक्ति की। अब भी पूजा हो रही,,,,,,, दानवी व्यक्तित्व की।। धरा पर रक्तबीजों की लता, शजहर होने न पाये । हे ! चंडी संहार कर,,,,,,,,,,,आसुरीय अस्तित्व का।। पग-पग पर दुशासन हैं,,,, राजनीति गलियारों में । करुण रूदन क्यूँ करती हो अन्धों के दरवारौं में।। अब ना कोई कृष्ण बचा, जो आकर लाज बचायेगा। रक्षक ही जब भक्षक हो, तो कोंन भला समझाएगा।। हे ! नारी तुम सबला हो,,,,,,अबला मान रही हो क्यूँ? अष्ट भुजाओं की शक्ति का, रहा तुम्हें संज्ञान न क्यूँ? खड़क, तेज,तलवार उठाऔ,रहे लहू निज खप्पर में। पापी का वक्ष चीर डालो, उड़े रून्ड वहु अंम्बर में।। क्रमश: धीरेन्द्र सिंह तोमर ✍✍✍✍✍

2 Love

यूँ ही नही मिलती सच्ची, मोहब्बत। बहुत कुछ छूट जाता है उसको पाने में ।।

 यूँ ही नही मिलती सच्ची, मोहब्बत।
    बहुत कुछ छूट जाता है उसको पाने में ।।

यूँ ही नही मिलती सच्ची, मोहब्बत। बहुत कुछ छूट जाता है उसको पाने में ।।

2 Love

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