फिर तुझसे कब कहाँ कैसे यकीनन मिला जाये, मयस्सर | हिंदी शायरी

"" फिर तुझसे कब कहाँ कैसे यकीनन मिला जाये, मयस्सर में तेरे ख्वाब कही मुकम्मल हो तो हो, अब यार तेरे तलब की दुहाई क्या देता मैं, कभी यार गैरइरादतन कभी ऐसे भी तो मिले होते ." --- रबिन्द्र राम ©Rabindra Kumar Ram"

 " फिर तुझसे कब कहाँ कैसे यकीनन मिला जाये, 
मयस्सर में तेरे ख्वाब कही मुकम्मल हो तो हो, 
अब यार तेरे तलब की दुहाई क्या देता मैं, 
कभी यार गैरइरादतन कभी ऐसे भी तो मिले होते ."
    
                            --- रबिन्द्र राम

©Rabindra Kumar Ram

" फिर तुझसे कब कहाँ कैसे यकीनन मिला जाये, मयस्सर में तेरे ख्वाब कही मुकम्मल हो तो हो, अब यार तेरे तलब की दुहाई क्या देता मैं, कभी यार गैरइरादतन कभी ऐसे भी तो मिले होते ." --- रबिन्द्र राम ©Rabindra Kumar Ram

" फिर तुझसे कब कहाँ कैसे यकीनन मिला जाये,
मयस्सर में तेरे ख्वाब कही मुकम्मल हो तो हो,
अब यार तेरे तलब की दुहाई क्या देता मैं,
कभी यार गैरइरादतन कभी ऐसे भी तो मिले होते ."

--- रबिन्द्र राम

#यकीनन #मयस्सर #ख्वाब #मुकम्मल

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