Rabindra Kumar Ram

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I love writing poetry , sayari , gazal , lyrics , singing etc..

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" हसरतों का अब कौन सा मुकाम बनाते हम , दहलीज़ों पे तेरे होने का कुछ यकीनन यकीन आये , रुठे - रुठे से जऱा मायूस हो चले अब हम , बेशक उसके ज़र्फ़ में इसी शिद्दत से भी हमें भी आजमायें जाये ." --- रबिन्द्र राम ©Rabindra Kumar Ram

#दहलीज़ों #आजमायें #हसरतों #ज़र्फ़ #शायरी  " हसरतों का अब कौन सा मुकाम बनाते हम ,
दहलीज़ों पे तेरे होने का कुछ यकीनन यकीन आये ,
रुठे - रुठे से जऱा मायूस हो चले अब हम ,
बेशक उसके ज़र्फ़ में इसी शिद्दत से भी हमें भी आजमायें जाये ." 

                           --- रबिन्द्र राम

©Rabindra Kumar Ram

" हसरतों का अब कौन सा मुकाम बनाते हम , दहलीज़ों पे तेरे होने का कुछ यकीनन यकीन आये , रुठे - रुठे से जऱा मायूस हो चले अब हम , बेशक उसके ज़र्फ़ में इसी शिद्दत से भी हमें भी आजमायें जाये ." --- रबिन्द्र राम #हसरतों #दहलीज़ों #ज़र्फ़ #आजमायें

10 Love

" जाने किसकी ख़्वाहिशों का तलबगार हो रहा हूं , मुहब्बत हूं प्यार से इश्क़ हो रहा हूं , छुपाते की ज़ाहिर करें अपने आरज़ू, जाने किसकी अज़िय्यत में मैं जी रहा हूं ." --- रबिन्द्र राम ©Rabindra Kumar Ram

#अज़िय्यत #मुहब्बत #तलबगार #ज़ाहिर #प्यार #इश्क़  " जाने किसकी ख़्वाहिशों का तलबगार हो रहा हूं ,
मुहब्बत हूं प्यार से इश्क़ हो रहा हूं ,
छुपाते की ज़ाहिर करें अपने आरज़ू,
जाने किसकी अज़िय्यत में मैं जी रहा हूं ."

                         --- रबिन्द्र राम

©Rabindra Kumar Ram

" जाने किसकी ख़्वाहिशों का तलबगार हो रहा हूं , मुहब्बत हूं प्यार से इश्क़ हो रहा हूं , छुपाते की ज़ाहिर करें अपने आरज़ू, जाने किसकी अज़िय्यत में मैं जी रहा हूं ." --- रबिन्द्र राम #तलबगार #मुहब्बत #प्यार #इश्क़ #ज़ाहिर #आरज़ू #अज़िय्यत

10 Love

" ‌‌इस उम्मीद में कहीं मुलाकात तो हाेगी , जद्दोजहद में इन रातों फिर का क्या करना , मुसलसल एहसासों को तबजओ दे तो आखिर क्या , सुलगती हिज़्र के रातों का फिर क्या करना , नुमाइश मुम्किन तो फिर कहीं बात छेड़े हम , वस्ल की गुज़ारिश में तेरे एल्म का फिर क्या करना ." --- रबिन्द्र राम ©Rabindra Kumar Ram

#शायरी  " ‌‌इस उम्मीद में कहीं मुलाकात तो हाेगी ,
जद्दोजहद में इन रातों फिर का क्या करना ,
मुसलसल एहसासों को तबजओ दे तो आखिर क्या ,
सुलगती हिज़्र के रातों का फिर क्या करना ,
नुमाइश मुम्किन तो फिर कहीं बात छेड़े हम ,
वस्ल की गुज़ारिश में तेरे एल्म का फिर क्या करना ." 

                             --- रबिन्द्र राम

©Rabindra Kumar Ram

" ‌‌इस उम्मीद में कहीं मुलाकात तो हाेगी , जद्दोजहद में इन रातों फिर का क्या करना , मुसलसल एहसासों को तबजओ दे तो आखिर क्या , सुलगती हिज़्र के रातों का फिर क्या करना , नुमाइश मुम्किन तो फिर कहीं बात छेड़े हम , वस्ल की गुज़ारिश में तेरे एल्म का फिर क्या करना ." --- रबिन्द्र राम

16 Love

" खुद को दिलासा और क्या दिया जाये कहीं मिले जो ख़बर तेरी ख़बर कुछ और तेरी ली जाये , मैं ज़ब्त भला कैसे और कर लू कहीं जो महज़ तेरी भनक भी लग जाये . " --- रबिन्द्र राम ©Rabindra Kumar Ram

#दिलासा #शायरी #ज़ब्त #ख़बर #महज़  " खुद को दिलासा और क्या दिया जाये कहीं मिले जो ख़बर तेरी ख़बर कुछ और तेरी ली जाये ,
मैं ज़ब्त भला कैसे और कर लू कहीं जो महज़ तेरी भनक भी लग जाये . " 

                              --- रबिन्द्र राम

©Rabindra Kumar Ram

" खुद को दिलासा और क्या दिया जाये कहीं मिले जो ख़बर तेरी ख़बर कुछ और तेरी ली जाये , मैं ज़ब्त भला कैसे और कर लू कहीं जो महज़ तेरी भनक भी लग जाये . " --- रबिन्द्र राम #दिलासा #ख़बर #ज़ब्त #महज़ #भनक

9 Love

*** ग़ज़ल *** *** आजमाइश *** " क्या बतायें कि किसी की ख़्वाहिश में जिते हैं , मुकम्बल जो ना हो जाने किसकी आजमाईश में जिते हैं , फिर बेजोर तौर पें तेरा होने का आजमाईश की जाये , फिर जाने तुम किसकी ख्वाहिश की तलब किये हो , क्या बतायें कि किसी की ख़्वाहिश में जिते हैं , मुकम्बल जो ना हो जाने किसकी आजमाईश में जिते हैं , रुखसत करें की क्या करें तेरे बगैर ही रहा जाये , तसव्वुर के ख्यालों में फिर किसी की आजमाइश की जाये , मिला है तो मिल बर्ना कभी ऐसे कभी फ़ुर्क़त हुई ना हो , रफ़ाक़त के कुछ सलीके तु मुझपे आजमायें तो सही तो सही हैं , रह रह के उठता है गुब्बार तेरा , तु भी कभी मुझे इस सलीके से आजमायें सही , क्या बतायें कि क्या आजमायें अब , मुहब्बत की कौंन सी तिलिस्म आजमायें है, वो आती हैं और चली जाती मेरी ख़्वाहिशों में , कि अब कौन सा क़सम दे उसे जो वो रुक जाये अब . " --- रबिन्द्र राम ©Rabindra Kumar Ram

#ख़्वाहिशों #मुहब्बत #तिलिस्म #गुब्बार #रफ़ाक़त #आजमाईश  *** ग़ज़ल *** 
*** आजमाइश *** 

" क्या बतायें कि किसी की ख़्वाहिश में जिते हैं ,
मुकम्बल जो ना हो जाने किसकी आजमाईश में जिते हैं ,
फिर बेजोर तौर पें तेरा होने का आजमाईश की जाये ,
फिर जाने तुम किसकी ख्वाहिश की तलब किये हो ,
क्या बतायें कि किसी की ख़्वाहिश में जिते हैं ,
मुकम्बल जो ना हो जाने किसकी आजमाईश में जिते हैं ,
रुखसत करें की क्या करें तेरे बगैर ही रहा जाये ,
तसव्वुर के ख्यालों में फिर किसी की आजमाइश की जाये ,
मिला है तो मिल बर्ना कभी ऐसे कभी फ़ुर्क़त हुई ना हो ,
रफ़ाक़त के कुछ सलीके तु मुझपे आजमायें तो सही तो सही हैं ,
रह रह के उठता है गुब्बार तेरा ,
तु भी कभी मुझे इस सलीके से आजमायें सही ,
क्या बतायें कि क्या आजमायें अब ,
मुहब्बत की कौंन सी तिलिस्म आजमायें है,
वो आती हैं और चली जाती मेरी ख़्वाहिशों में ,
कि अब कौन सा क़सम दे उसे जो वो रुक जाये अब . " 

                            --- रबिन्द्र राम

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*** ग़ज़ल *** *** आजमाइश *** " क्या बतायें कि किसी की ख़्वाहिश में जिते हैं , मुकम्बल जो ना हो जाने किसकी आजमाईश में जिते हैं , फिर बेजोर तौर पें तेरा होने का आजमाईश की जाये , फिर जाने तुम किसकी ख्वाहिश की तलब किये हो , क्या बतायें कि किसी की ख़्वाहिश में जिते हैं ,

14 Love

" मुख्तलिफ बात थी हम तुझे इशारा क्या करते , तेरे साथ चलना था मुझे तुझसे किनारा क्या करते , ज़ेहन में आते - जाते महज तेरी बातें ही नागवार थी , फिर तुझसे से तेरे होकर और तुझसे बिछड़ के तेरे हिज़्र में गुजारा क्या करते . " --- रबिन्द्र राम ©Rabindra Kumar Ram

#मुख्तलिफ #हिज़्र #गुजारा #नागवार #शायरी #इशारा  " मुख्तलिफ बात थी हम तुझे इशारा क्या करते ,
तेरे साथ चलना था मुझे तुझसे किनारा क्या करते ,
ज़ेहन में आते - जाते महज तेरी बातें ही नागवार थी ,
फिर तुझसे से तेरे होकर और तुझसे बिछड़ के तेरे हिज़्र में गुजारा क्या करते . " 

                            --- रबिन्द्र राम

©Rabindra Kumar Ram

" मुख्तलिफ बात थी हम तुझे इशारा क्या करते , तेरे साथ चलना था मुझे तुझसे किनारा क्या करते , ज़ेहन में आते - जाते महज तेरी बातें ही नागवार थी , फिर तुझसे से तेरे होकर और तुझसे बिछड़ के तेरे हिज़्र में गुजारा क्या करते . " --- रबिन्द्र राम #मुख्तलिफ #इशारा #ज़ेहन #नागवार #हिज़्र #गुजारा

13 Love

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